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Showing posts from 2010

मुझे जाना होगा

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मुझे जाना होगा | कुछ दिन आप सब से दूर , पेपर हैं पड़ना है , कुछ याद है कुछ करना है, याद करने मुझे जाना है मुझे जाना होगा | डेढ़ महीने ही बात है अब तो ये मेरे हालात हैं कर नही सकती हूँ कुछ सोचती हूँ फिर आऊँगी लेकर भावनाएं  कुछ अपनी कुछ परायी  तो फिर मुझे जाना है  मुझे जाना होगा | दे दीजिये आशीष  और कामना कीजिये  सफल हो लौटू  अपनी इस जंग से इस जंग की खातिर  अब मुझे जाना है  मुझे जाना होगा | मैं पढ़  रही थी तभी मुझे याद आया की अब मैं  बहुत दिनों तक आप सब के साथ नही रह पाऊँगी मेरे पेपर हैं तो बेठे हुए यूँही  सोचते हुए कुछ पंक्तिया याद आई तो सोचा इसी तरह आप सबसे विदा लूँ  कुछ दिनों के लिए | जब तक पेपर ख़तम ना हो बस आपका आशीष मिल जाये  तो जल्द ही मिलना भी होगा | पर आप सब से अनुरोध है  की कभी भूल ना जाना आऊँगी मैं  लौटकर  मुझे याद रखना | - दीप्ति शर्मा 

इक तारा

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मैं इक तारा हूँ और  टूटकर बिखर गया हूँ | कभी चमका करता था , हँसता था आसमां मे , आज किसी की ख़ुशी के लिए  अपना वजूद खोकर  जमीं पर उतर गया हूँ , टूटकर बिखर गया हूँ | दे दिया है सब कुछ  पर मिला तो कुछ नही है , उसकी तमन्ना पूरी करने , आसमां से गिर गया हूँ , टूटकर बिखर गया हूँ | जब देखा था उसने  कुछ उम्मीद लिए मुझे , आंसू जो बह रहे थे उसके  उन आंसुओ की खातिर  मैं जमीं से मिल गया हूँ | टूटकर बिखर गया हूँ | - दीप्ति 

जिन्दगी

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उलझनों में जीती हुए मैं, जिन्दगी को तलाश रही हूँ| जगती हुई उन तमाम अडचनों के साथ मैं खुश रह जिन्दगी निखार रही हूँ | बेवजह की उस उदासी का जिक्र चला यादो की चादर से खुद को पहचान रही हूँ| गम भुला के दिल की उन उम्मीदों को दिल मे बसा तेरी यादों को ठुकरा रही हूँ | जीने की चाह मे आह को भूला चेहरे के तासुर  में गम छिपा जिन्दगी को तलाश रही हूँ | - दीप्ति

दीवाना

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दीवाना   जिसे हम कहते हैं  दीवाना  सही पर है वो क्या  आखिर क्यूँ ये जमाना  दिल वालो को  दीवाना  कहता है  दीवाने की पहचान है क्या हम किसे दिवाना कहते हैं  दिवाना जिसे हम कहते हैं  दिवाना सही पर है वो क्या  वक़्त वो लम्हा है कौन सा  जब ये दीवाने आते हैं  दिखते कैसे  चलते कैसे  इनकी कुछ पहचान तो दो  कोई आके इस दिल को बताये  की कैसे  ये दीवाने होते हैं दीवाना    जिसे हम कहते हैं  दीवाना  सही पर है वो क्या  ये मैने तब लिखा जब मैं ८ क्लास में थी तब मुझे कविता का मतलब भी ठीक से पता नही था पर जो दिल ने कहा लिख दिया पर आज मैं आप सब को वो जरुर पढाना  चाहूंगी  - दीप्ति 

गम

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जीना है सीखा इस गम से , पीना है सीखा इस गम से , हम हैं गम से  गम हैं हम से | ये जो जिंदगानी है हमसे , और मोहब्बत है तुमसे | खुशिया हैं जो तुमसे  वो डूब गयी मेरे गम से |                                  - दीप्ति 

विजय पर्व

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यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत याद दिलाता है| आज के समय में कितने ही रावण यूँ ही घूमते हैं पर उनका नाश करने में हम भले ही असमर्थ हो पर हृदय में श्री राम को रख उनसे जूझने   का होसला तो ला ही सकते हैं | और बुराई पर जय की विजय की कोशिश तो कर ही सकते हैं |   जय राम जय राम जय जय राम  श्री राम चन्द्र की जय   विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाये 

ऐसा एक संसार बनाऊं

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ऐसा एक संसार बनाऊं , ना हो जहाँ गम का अँधियारा | हर इंसा को मिले जहाँ , कश्ती का हर किनारा , महफ़िलें तो हो बहुत पर, गम का ना नामों निशाँ हो , ऐसा एक संसार बनाऊं , ना हो जहाँ गम का अँधियारा | मुश्किलें मिल जाये कहीं तो , आसाँ हो जाये ये रास्ता तुम्हारा , अरमाँ हो  पूरे दिल के सभी , और खिल जाये मुस्कान से , वो खुशनुमा चेहरा तुम्हारा| ऐसा एक संसार बनाऊं , ना हो जहाँ गम का अँधियारा | - दीप्ति 

बताऊँ मैं कैसे तुझे ?

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वो लम्हे हमें हैं अब याद आते , ना भूले हैं जानम ना भूल पाते , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? वो लहरों की कस्ती , वो फूलो की वादी , सितारों की झिलमिल ,   कहाँ खो गयी , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? वो चूड़ी की छनछन , वो पायल की खनखन , कहाँ खो गयी , बताऊँ  मैं कैसे तुझे ? वो कोयल की कूंह कूंह ,   वो झरने का झरना ,   रिमझिम सी बारिश,   कहाँ खो गयी , बताऊँ मैं कैसे तुझे ?   फूलों की ख़ुशबू ,   महकता वो आँगन ,   मोहब्बत वो मेरी ,   कहाँ  खो गयी ,   बताऊँ  मैं कैसे तुझे ? - दीप्ति 

ज़िम्मेदार कौन ?

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उम्र महज ५ बरस , और मासूम मन  में हैं कई सवाल ,इस उम्र मे ही माँ बाप  का अलगाव , वो विछोह जो उसके नन्हे दिल मे कई सवाल ले आता | उस बाल मन को झकझोर देने वाली ये घटना उसके मन में ऐसा प्रभाव डालेगी की कोई सोच नही सकता| समय बीता|  वो बड़ी हो गयी  बाप का साथ नहीं है, और माँ दिन भर पार्टी और पोलिटिक्स में व्यस्त रहती | वो कॉलेज जाने लगी , वहा उसे हमउम्र लड़के से  प्यार हो गया, पर कुछ समय बाद वो डोर टूट  गयी  जिससे वो परेशान हो गयी और उसने पुलिस का सहारा लिया और लड़के को जेल भिजवा दिया | वो इतना परेशान थी की कोई चाहिए था उसे जो उसका अपना हो | तभी उसकी मुलाकात विक्की से हुई जो अपराधी प्रवत्ति  का था |धीरे धीरे वो उस से प्यार करने लगी और उसके साथ रहते हुए वो भी गुनाह के रस्ते पर चल पड़ी | फिर क्या था ? वो उसके साथ लोगो को ठग रही थी कई बार कई जगह , सिलसिला थमा नहीं और एक दिन वो पुलिस के हाथ लग गयी उसके पास करोडो रुपये थे जो उसने इस तरह कमाए | आज वो जेल में है | एक लड़की के गेंगेस्टर बन जाने की यह कहानी सबके लिए सबक है  पर इसके लिए जिम्मेदार कौन?

ये कैसी रौशनी

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जब  कभी  हम बहुत दूर जाना चाहते हैं  और बिना सोचे चल देते हैं  तो कभी उसका परिणाम भयावह भी हो सकता है  इसे कविता तो नहीं कहुगी पर ये वो  शब्द  हैं जो मेरे दिल ने कहे.... दूर  जहाँ रौशनी थी , कदम बढाये थे उसने , हौसला  भी तो  था| था  उल्लास  इतना कि , सब  भूल पहुँचाना चाहती थी  वो तो, उस रौशनी तक | डगमगा रहे थे कदम  ना जाने कितनी , दूर हो मंजिल | बस एक आभास, ही तो था उस  रौशनी  , के दूर होने का| जो अपने पास , उसे बुलाती थी\ उमंग थी उसे उस रौशनी मे समा जाने की| उसके आगोश मे  लिपट जाने की | दर्द झेल सामना , किया था मुस्किलो का, पहुँचने को रौशनी   तक\ आखिर पहुच गयी , उस रौशनी तक  अपनी मंजिल समझ | नादाँ थी  लगा था  एक वही मंजिल है जब पहुंची उसकी , गिरफ्त मे तो जाना  वो कोई रौशनी  नही , वो तो आग थी\ जिसने बैखोफ  उडती हुई उस चिड़िया के पंख  को ही जला दिया| उसे पहुँचाना तो था  अपनी मंजिल तक  पर  रौशनी  की चाह, मे वो पंख फेला , अंधकार मे पहुँच गयी | वो अंधकार जहाँ  से लौट  के  आना  मुमकिन ही नहीं, रौशनी  की चाह मे  जो बढाये थे कदम   वो कदम  ही उसे

कैसी इंसानियत

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आज सुबह ही वो माँ का आशीर्वाद ले काम पर निकला , कितना खुश था अपनी धुन में मस्त , रोज कि तरह वो काम पर पहुँच गया | वहां पहुंचकर उसे पता चला कि आज उसे बहुत जरुरी काम करना है | कुछ रुपये है वो बैंक मै जमा करने हैं, करीब १२ लाख रुपये हैं| इतनी बड़ी जिम्मेदारी समझ , और मालिक का हुकुम भी तो है तो करना तो है ही| तो उसने bike ली और अपने एक साथी के साथ चल दिया | पर कुछ कदम दूरी पर ही कुछ लोगो ने उसे रोका और उसकी आँख मे लाल मिर्ची पावडर डाल दिया और रुपयों का बैग छिनने लगे उसने नही दिया, देता भी कैसे किसी और कि अमानत जो थी उन लोगो ने उसे गोली मार दी और बैग लेके भाग गये |वो वही  तडपता रहा और लोगो ने उसे अस्पताल तक ले जाने कि गनीमत नही कि और तो और अपने खिड़की दरवाजे भी लगा लिए और आँखे बंद कर बैठ गये | और उसने तडपते हुए वहीँ दम तोड़ दिया| आखिर क्यों लोग सब जानते हुए भी गलत लोगो का साथ देते हैं उनका विरोध नही करते | हमलावर कुछ ही लोग थे अगर सारे लोग डरे बिना , मिलकर उन्हें पकड़ते | वो कुछ रहम दिखा देते तो शायद   वो पकडे जाते और उसकी जान बच जाती , उस माँ कि कोख सुनी नही होती | क्या ये ही इंसानियत

मेरी जिंदगी

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मिली थी कभी जिंदगी मुस्कुराकर | मेरा साथ दे  ख्वाबो में समाकर | अपने अश्को को  मेरी आँखों से बहाकर | ख़ामोशी से अपनी  मुझे तड़पाकर| चली गयी वो  कहना तो चाहती थी पर खामोश हो गयी मुझे रुलाकर|

तुम इन्सान हो

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इन खामोशियो  के रहते , कोई बात जुबान  पे लाना , आसान नहीं| जो कहना है  कह दो, तुम इन्सान  हो भगवान नहीं |  २००६ दीप्ति शर्मा   

मेरी कहानी

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वो किस्सा था या कहानी थी बात थी दिल की जो कि, बस दो लफ्जो में बतानी थी | कही जो बात दिल से थी वो कुछ बाते बड़ी रूमानी थी\ वो अंदाजे वफ़ा जो कभी, शिखर तक उसकी जुबानी थी| हाल-ये-दिल उल्फत में, बयां कर गया कुछ बातें वो कुछ लम्हों कि निशानी थी| जब राहें बनाये थी मैंने | सहारा ले कुछ पत्थरों का वो राहें भी तो अनजानी थी| मुकद्दर था ही नही रौशन , तभी तो वो दिल कि बातें मेरी तबाही कि निशानी थी अंगारे बन गये वो बाते बातों भरी वो मेरी कहानी थी | २००९    दीप्ति शर्मा

दिल मेरा ना पहचान सका

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दिल मेरा ना पहचान सका उसको जिसको मै चाहती थी| दिल की बगिया में फूल समझ मैं ख़ुशी ख़ुशी इठलाती थी | चाहत की बगिया सींच कहीं मै अपनी प्यास बुझाती थी | दिल मेरा ना पहचान सका उसको जिसको मै चाहती थी| २००७ दीप्ति शर्मा 

जख्मो पे मरहम लगाते रहे

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अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे, ढूंढ़ते रहे किसी को की कोई अपना हो, और लोग हमें हर वक़्त आजमाते रहे, अपनी खुशियों की परवाह नही की लुटा दी हर ख़ुशी सब की ख़ुशी के लिए हर रूठे को हम तो मनाते रहे , अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे| कहा था सबने मुझे कुछ मिलेगा नही. जानते थे फिर भी ना जाने क्यों? हम किस्मत को खुद से छुपाते रहे , अपने अश्को को आँखों से बहाते रहे, दिल मे किसी के सपने सजाते रहे, अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे| भटकते रहे जिन्दगी तलाशने को, सोचा लम्हों का सहारा मिलेगा मुझे, तमन्नाओ को अपना सहारा समझ , हम एहसासों से दामन छुडाते रहे , उलझी जिन्दगी को सुलझाते रहे, अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे| २००८ दीप्ति शर्मा 

विश्वास

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नहीं होता  विश्वास उन बातों पे, ना जाने दिल क्या चाहता है तुझ पे विश्वास है खुद से ज्यादा पर क्यों नही आज यकीं होता है सोचा की ये यकीं मजबूत है बुलंदियों पे है होसला  मेरा तुझे चाहने का तुझे पाने का पर अब मेरे इस दिल को नही होता विश्वास उन बातों पे | जिसकी हर बात पे आँखे मूंद मैने विश्वास किया कभी पर आज ये डगमगा रहा क्यों? नहीं विश्वास होता उन ख्वाबो पे जो इन आँखों ने देखे तुझे पाने के दिल इतना कमजोर कैसे हो गया विश्वास था जिस पे खुद से ज्यादा क्यों आज उसकी बातों पे कैसे भी विश्वास नहीं होता |

हमारी जिंदगी

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ये हमारी कैसी जिंदगी है कितने ही लोग मिलते हैं कितने ही बिछड़ जाते हैं जो कभी हमारे  अपने , तो कभी पराये लगते हैं \ गमो के बादल बरसते हैं कभी यूँ ही गरजते हैं | हम इन गमो में गिरते, गिरते संभलते हैं कई आँखों मे उतरतें हैं , और दिल मे बस जाते हैं , वो हमें अपना बनाते हैं और हमारे बन जाते हैं बस ऐसी ही जिन्दगी है ये हमारी कैसी  जिन्दगी है

जिन्दगी

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हाँ ये वही किनारा है तुफानो पे खड़े हो , किसी ने पुकारा है | बरस रहे हैं मेघ छा गयी घटाए भी ये कुदरत का इशारा है  की हमारे दिल में गम बहुत सारा है हमारे अपनों का साथ ही, हमारे जीने का सहारा है, अब ऐसा लगता है ये सारा जहाँ  हमारा है |

मैं

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मैं कुछ लिखना चाहती हूँ , हूँ तन्हा पर पता नहीं , पर जिंदगी से अनजान , इस कायनात में रहकर  कुछ नाम कमाना चाहती हूँ | जो मुझे मेरी मंजिल दे , और  दे वो मुझे सारी ख़ुशी , अनजानी उन खुशियों को , दिल से महसूस कर , जिंदगी को जीना चाहती हूँ | ख्वाबो को पूरा कर मैं, इस नीले गगन के नीचे, पक्छियो की तरह पंख फैला , आज़ादी  से उड़ना चाहती हूँ | मैं जिंदगी की राह मे , बहुत दूर जाना चाहती हूँ |

तेरी राह

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ढूंढा हर किनारा, हर महफ़िल तलासी, हर गली ढूंढ़ ली हर राह , पर तेरी राह ना मिली | उस किनारे पे जहाँ , हम मिले थे कभी, वहा जहाँ बीते लम्हे, गुजरे थे कभी| ढूंढ़ ली हर राह, पर तेरी राह ना मिली| तेरी यादो को ढूंढा, तेरी बातों को ढूंढा, तेरे चलने के उन, पदचिन्हों को ढूंढा, ढूंढ़ ली हर राह, पर तेरी राह ना मिली |

किसी पे फ़िदा कभी होना नहीं

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मुकम्बल फ़साना है दिल का यही, तुम किसी पे फ़िदा कभी होना नहीं| तुम्हारे दिल मैं है मोहब्बत अगर, तो अपने कदम पीछे करना नहीं, किनारे पे तुम जो रपट भी गये , तो ये जमाना तुम्हे छोड़ेगा नही| चाहते हो जो तुम ज़माने से , बचना ये मेरे प्यारे दोस्त, भूल से भी तुम प्यार करना नहीं, रस्ते हैं कठिन सच के सारे मगर, झूठ का साथ कभी देना नहीं| तेरे दिल में हैं अगर लाख गम , चेहरे पे सिकन कभी लाना नहीं, मुस्कुराते तू रहना सदा मेरे दोस्त, मुझसे कभी गम छुपाना नहीं \ दोस्ती जिन्दगी का ऐसा साथ है , जो सदा साथ दे ना छूटे कभी, दोस्त तुझसे कहूँगी मैं तो यही , मुकम्बल फ़साना है दिल का यही, तुम किसी पे फ़िदा कभी होना नहीं | - दीप्ति शर्मा

मैं

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सोचा है कौन हूँ मैं एक अभिलाषा या कोई परिभाषा हूँ| मासूम कमल की, खिलती कली हूँ  मैं| जिंदगी से हूँ मैं या, किसी की जिंदगी हूँ, उलझनों से घिरी, एक मिसाल हूँ मैं | कोई सवाल या , खुली किताब हूँ मैं| सोचा करती हूँ , आखिर कौन हूँ मैं |

तूने,

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कैसी घडी ला खड़ी की तूने, न कोई तमन्ना न कोई आरजू, सितम भी खूब आया , रस्मो रिवाजो को तोड़ डाला, दुनिया से  बेखबर ऐ हंसी , कैसी घडी ला खड़ी की तूने | दुनिया से रुक्तबू होने से पहले सरमिन्दगी महसूस होने से पहले , अँधेरे राश्ते मैं यूँ मुझे तन्हा छोड़कर चली गयी दुनिया से  बेखबर ऐ हंसी , कैसी घडी ला खड़ी की तूने |

वो एक सपना था

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जब प्यास लगी तो मैने देखा , पानी था नही मदार में , वो तो बिक रहा कोडियो में , उन अफसरों की दुकान में| उस पानी को लेने पहुंचे, हकीम और सुनार हैं मैं पीने पहुंची उस पानी को , वो पानी नही शराब थी , अचरज मे जिसने डाल दिया , गहरी निद्रा को हिला दिया मुझे नीद से जगा दिया , वो सपना मेरा तोड़ दिया|

कोई होता

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जिंदगी की विरान महफ़िलो में, कोई उजाला तो होता | इस  दुनिया की भीड़ में , मेरा कोई सहारा तो होता | जो थाम लेता हाथ मेरा , कभी दुखी ना होने देता, वो मेरे साथ साथ , कदम से कदम मिला , हर राह पे चलता , मेरी मंजिल वो ही होता , जो सिर्फ मेरा होता, काश ऐसा भी कोई, मेरी जिंदगी मे होता | - दीप्ति शर्मा 

ख़ामोश रही मैं|

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क्यूँ तुझे पाने तक, तेरे पास आने तक, यूँ ख़ामोश रही मैं| लेके एहसास  तेरा, दिल में  प्यार तेरा, यूँ  ख़ामोश रही मैं | अजनबी परछाई थी , अश्क आँखों में लिए, तेरी याद बहुत आई थी, याद लिए तेरी दिल में, यूँ ख़ामोश रही मैं| जब से तू चला गया, तेरी वो महक तब से, इस तन में समायी थी, तू समा जाये मुझमें , मैं समाऊं तुझमे, ये सोच आज तक , यूँ ख़ामोश रही मैं| जैसे  तेरे आने की, दिल को आहट थी | - दीप्ति शर्मा 

वक़्त जो गुजर गया

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वक़्त तो  गुजर जाता है पर यादें  छोड़ जाता है | यादों के सहारे कैसे  जिया जा सकता है जीने के लिए सहारे की जरुरत होती है पर जब वो सहारा ही ना हो तो........... वक़्त बहती हुई  सरिता के समान है जो हमेशा आगे  बढता रहता है वो पीछे के रस्ते नही देखता ना ही देखना चाहता है | वक़्त की कमान को हाथ मे लिए कब तब चला जा सकता है , कुछ ही लोग होते हैं जो वक़्त के साथ साथ चलते हैं और कुछ सोचते ही रह जाते हैं और वक़्त निकल जाता है | एक लड़की जिसने वक़्त की पाबन्दी को समझा , जाना ,परखा इसलिए ही तो वो हमेशा वक़्त के साथ चली पर ये अचानक क्या हुआ किसी पर अत्यधिक विश्वास  घातक सिद्ध हुआ | जो नही चाहती थी वही हुआ | उस रहम दिल, सच्चाई परस्त लड़की को एक  दिन इतना बड़ा धोखा मिलेगा जिसके होने का तनिक भी आभास नही था | जिस पर उसने इतना भरोसा किया जिसे वो प्यार करती वो उसे छोड़ के किसी और का हो लिया अब वो पूरी तरह टूट चुकी थी लगता था अपनी जिंदगी से हर गयी हो, उसे लगता था की अब उसके पास कोई और रास्ता बचा ही नही है अब बस एक ही रास्ता बचा है वो है मौत | वो अपने आप को ख़तम कर लेना चाहती थी ,क्या हर एक सच्चे प्यार करने

दर्द

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जब भी उसे देखती ये दिल सिहर उठता, उसकी खामोश बेचेनी से भरी आँखे आंसुओ  के सहारे सब कुछ बायान कर देती | वो कुछ भी ना कहते हुए भी सब कुछ कह जाती | उन आँखों में जितना दर्द था , उतनी ही तड़प भी | तड़प तड़प के जीना कितना दुश्वार होता है लेकिन मजबूरियां तो देखो जिसने उसे तड़प कर जीने पर मजबूर कर दिया, जिन्दगी तो मानो वीरान ही हो गयी, देखकर उसे एसा लगता मानो जीने की तमन्ना  विलुप्त हो रही हो| ना रोती थी, ना हँसती  थी, और कभी कभी रोते हँसते  अपना आपा ही खो बैठती| लोग तो उसे पागल समझने लगे पर किसी को क्या पता कितने दर्द सहे थे उसने , अपनों से दिया गया वो दर्द उसे हर समय सुई के समान चुभता ,पर किसी ने उसकी तड़प ना समझी , पागल समझ पागलखाने में  डाल दिया , जहा उसकेl साथ जानवरों से बत्तर सलूक किया जाता , अंततः तड़प की सीमा टूटी, दर्द का अंत हुआ और उसका अंत हो गया\ वह बर्दाश्त नही कर सकी, और अपने  दर्द को जगजाहिर  ना करते हुए अपने साथ ले गयी |

ये जिंदगी का झरना

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अतीत की झलक

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एक बात जो दिल पर कटाक्ष सा व्यवहार करती | उस तीर के सामान चुभती की दर्द उस आह से घबराने लगे जो अतीत के उन झरोखों को याद दिलाये , जिनके याद  आने से रूह भी काँप  जाये | अतीत के उन पन्नो की झलक आज भी याद है | जिसे चाहके  भी ना भुला पाई  | जब वो लम्हे याद आते हैं तो इन आँखों से ये आंसू झरने के समान बहते दिखाए देते हैं, और चेहरा पतझड़ मे मुरझाये उस पेड़  की तरह हो जाता है जिसमे शायद  ही पत्ती नजर आये \रेशमी हवाओ की तरह संजोये हुए वे रेशमी सपने जो मैने सोचे, देखे महसूस किये | क्या सपने भी कभी सच होते हैं बस यही सोच आगे बढ रही हूँ और मंजिल पाने की चाह मे उन बातो को लम्हों को भुलाने की कोशिश मात्र करती हूँ | शायद कभी ऐसा  भी दिन आये जब मे अपनी मंजिल के करीब हूँ और ........................ खेर जो सोचा उसे बिता कल समझकर भूल जाना ही अच्छा है| किसी बात को कबतक कोई जेहन में दबा सकता है समुन्दर मे छिपा मोती भी ढूंढ़ लिया जाता है ये तो इक बात है जिसे दिल मे रखना उसी प्रकार होगा जिस प्रकार पतझड़ मे फूल खिलना , सोचकर मन  कांप जाता है होंटो की लालिमा सहसा ही मुरझा जाती है आँखों का काजल धुल जाता है | बस

मैं ना समझ सकी

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ये कैसा जीवन है, मैं ना समझ सकी | हूँ अपनों के साथ से जिन्दा पर क्यों? उनके रहते तन्हा हूँ ,मैं ना समझ सकी | सब कुछ जान  रही पर खामोश हूँ , हैरान  हो दुनिया के रुख को  देख, अपने ख्वाबो को भी, मैं ना समझ सकी | उलझने ना थमती हैं ना रूकती  हैं , इन उलझनों के भंवर में फंसी, उन अडचनों को भी मैं ना समझ सकी | फिरती हूँ  अपनी आँखों मे आंसू लिए , दुनिया मे क्या कीमत है इन आंसुओ की ये दुनिया मे रह मैं ना समझ सकी | - दीप्ति शर्मा 

क्या ये ही जीवन है?

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जब कभी मैं उदास होती हूँ |मन विचलित होता है इसी गहरी उदासी मे मन करता है कुछ लिखू पर क्या ये समझ मे नही आता | जब अकेली हूँ या कोई दर्द हो कोई अपना रूठ  जाये बात ना करे | जिंदगी मे कई मोके एसे आते हैं जब किसी के साथ कि जरुरत होती है | कभी ऐसा  एहसास होता है सब साथ हैं पर अगले ही पल सब दूर हो जाते हैं | सभी को इस जिंदगी से कुछ ना कुछ शिकायत होती है कोई खुश नही , सभी के दिल में कुछ ना कुछ उलझाने , कई सवाल होते हैं | मेरे भी हैं | जीवन मे हमेशा तन्हाई क्यों मिलती है , हर वक़्त सिर्फ रुसवाई क्यों मिलती है जो मांगो वो पूरा नहीं होता , मन मे हरदम इक द्वन्द रहता है | जब दिल मे गम होते हैं तो अकेले बैठके रो भी नही सकते उसका भी कारण बताना पड़ता है , कही एकांत नहीं जहाँ बैठकर दिल को बहलाया जा सके | दिल कि बाते कहे तो किस से , कौन है सच्चा कौन है झूठा आखिर भरोसा किस पर करें जिस से बात करना चाहो वो कुछ दिन तो ठीक से बात करते हैं फिर ना जाने क्यूँ वो भी मुंह  मोड़ लेते हैं |जब अपना मतलब हो तो साथ रहते है ,मतलब ख़तम तो साथ भी ख़त्म | शायद मुझे ही बात करने का सलीका नही आता इसलिए तो साथी बिछुड़ जाते ह

हम तो यूँ जिया करते हैं

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हम तो यूँ  जिया करते हैं लहरों से लड़ा करते हैं कश्तियाँ भी घबरा जाये हम इस तरह सेलाबो में साहिल से मिला करते हैं हम तो यूँ जिया करते हैं | हरपल  खुश रहकर आकाश कि सोच रख ऊचाई छुआ करते है हम तो यूँ जिया करते है | कदम अपने सम्भाल रास्तो पे चला करते हैं मंजिलो को पाने की हम कोशिशे किया करते हैं हम तो यूँ जिया करते हैं | खुद को रुला अपनी हंसी दुनिया को दे ख़ुशी से अब मस्त रहा करते हैं हम तो यूँ जिया करते हैं | नदी से निकल सागर की गहराई से मिला करते हैं अब हम वक़्त के साथ उम्मीद लिए चला करते हैं हम तो यूँ  जिया  करते हैं | -दीप्ति शर्मा 

स्वार्थी दुनिया

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पंक्षियो  की कौतुहल आवाज़ से मेरी आँख खुली | मौसम सुहावना था | पवन की मंद महक दिवाना बना रही थी | बाहर लॉन मै कई पंक्षी चहक रहे थे मौसम का आनंद लेने के लिए मैने एक चाय बनायीं और पीने लगी | अचानक देखा की कई कुतो ने एक तोते को पकड़ लिया और उसे बड़ी मर्ममय  के साथ मारने लगे | मानो मेरे तो होश उड़  गये मैने पास मै पड़ा एक डंडा उठाया और उन्हें भगाया | वे तोते को वही छोड़कर भाग गए | मैने तोते का इलाज किया उसे पानी पिलाया लेकिन तोता २-३ घंटे से ज्यादा नहीं जी सका | मै उसे नहीं बचा सकी इस बात का बहुत दुःख है | मैने देखा की किस तरह उन कुतो ने अपनी भूख  मिटाने के लिए एक मासूम सुन्दर तोते को मार दिया | और मैने महसूस किया कि इस मतलबी दुनिया मे कुछ लोगो के स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए ना जाने कितने मासूमो को अपनी बलि देनी पड़ती है | - दीप्ति शर्मा 

मेरी बातें

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मैने अपनी इस छोटी सी अब तक की जिंदगी मे कई उतार चढाव  देखे है| कई मुश्किल दौर  से गुजरी हूँ . इनसे बस ये समझ आता है की ठोकरे तो हैं रस्ते पर |  वो मंजिल ही क्या जिसमे मुश्किलें ना हो पर मुश्किलें जीतने  को हौसलें की जरुरत होती है और ये हौसला अपनों के साथ से आता है अपने तो हमेशा  ही साथ होते हैं पर फिर भी क्यों खुद को इतना तन्हा, अकेला महसूस करती हूँ ,आखिर क्या चाहती हूँ शायद खुद भी नहीं  जानती  की मेरा दिल क्या चाहता है क्या बात है दिल मे, कोई बात तो है जो मे समझ के भी समझना नही चाहती और खामोश रहकर अपने सवालो के जवाब तलाशती हूँ जो शायद ही पूरे हो, लगता है कहीं ये सवाल , सवाल ही ना रह जाये पर मन भी तो इक जगह स्थिर नही रहता इक सवाल हो तो कोई जवाब मिले पर इन सवालो से ही जिंदगी चलती है  उसे इक बहाना मिलता है आगे बढ़ने  का , कभी लगता है जिन्दगी भी तो अपनी नही है जिन्दगी के दुःख तो अपने है  पर सुख अपने नही वो पराये है और कभी जब मैं  अपनी भावनाओ को भी व्यक्त ना कर पाऊं तो क्या करूँ  ? किस से कहूँ ?     सोचती हूँ  ये जिन्दगी इक आकाश की ही तरह तो है जिसमे भावना रूपी बादल  हमेशा छाये रहते हैं

जिन्दगी

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मेरे अहसासों की उस हवा की महक सी है मेरी हस्ती कोशिश करूँ तमाम पर हिचकोलो से गुजरती हुई चलती है ये मेरी कस्ती तमाम उलझनों से जुझते जिन्दगी की राहों से अनजान ढलती हुई जीवन की मस्ती ख्वाहिशो की अभिलाषा सी सच्चाई तलाशती हुई है चाँद लम्हों की मेरी बस्ती

कोई आया ही नहीं

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जिसे चाहा उसे पाया ही नहीं खुशियाँ  दे जो मुझे हरदम ऐसा कोई दिल मे समाया ही नहीं ये दिल करता रहा इंतजार पर किसी ने कभी मुझे अपना समझकर सताया ही नहीं लगा इक रोज यूँ  जैसे  मुझे मिल गया है कोई अपना पर उसने मुझे अपनाया ही नहीं ऐसा लगता है मुझे ना जाने क्यों जो समझ सके मुझे अपना ऐसा कोई खुदा ने आज तक कायनात मे बनाया ही नहीं  तभी तो आज तक कोई ऐसा मेरी जिन्दगी मे आया ही नही| - दीप्ति शर्मा

तुम

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मेरे गीतों का संगीत हो तुम सुर दिया मेरे स्वरों को जिसने लवो पे छाई कलम से निकली वो मनमुग्ध गजल हो तुम सजदा करूँ जिसे दिल से वही प्यार की कलि हो तुम उम्मीद करूँ जीने की मैं  जिसके हंसी दामन में अरे ऐसी  मेरी हसरत हो तुम जीती हूँ जिसके धडकने से दिल की वही धड़कन हो तुम - दीप्ति शर्मा 

तस्वीर

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मेरी इन बरसती आँखों से, दिल मे ख़ामोशी छाई है  ख़ामोशी में मेने कुछ जानी हुई तमन्नाओ से भरी उसकी इक तस्वीर बनायीं है मेरी आँखों मे वो समायी है जिसकी तस्वीर मेने बनायीं है उसके खिलके मुस्कुराने से उसके इस तरह याद आने से याद कर उसे ही तो मैने ये प्यारी तस्वीर बनायीं है और उस तस्वीर को देख फिर से ये आँख भर आयी है - दीप्ति

याद

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जब ना रहे कोई पास , याद बनके आ जाउगी . आंसुओ के मोतिओ को, यूँ ही झलका जाउगी मुझे किनारे ना मिले, बह गए ये जिंदगी , जीवन के मझधार मे. पर रोशन कर ज़हां, तुम्हारा महका जाउगी. जब ख़ामोशी मे याद कर, आँखों से  आंसू बहाओगे, बनके हवा यूँ पास आ , तुम्हे सहला जाउगी . ना होंगी पास तुम्हारे, पर याद आके तुम्हे, दूर से ही रुला जाउंगी. - दीप्ति