रौशनी तो उतनी ही देती है
कि सारा जहाँ जगमगा दे
निरंतर जल हर चेहरे पर
खुशियों की नदियाँ बहा दे
फिर भी नकारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
मूक बन हर विपत्ति सह
पराश्रयी बन जलती जाती
परिंदों को आकर्षित कर
जलाने का पाप भी सह जाती
फिर भी दुत्कारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
जीवन पथ पर तिल तिल जलती
आघृणि नहीं बन कर शशि
हर घर को तेज से अपने
रौशन करते हुए है चलती
फिर भी धिक्कारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
अपना अस्तित्व कब खोज पायेगी
दूसरों के लिये नहीं अपने लिये
ये भी मुस्कुराकर जी जायेगी
बनावटी नहीं खालिस बन
कब पहचानी जायेगी??
वो अधजली लौ
कि सारा जहाँ जगमगा दे
निरंतर जल हर चेहरे पर
खुशियों की नदियाँ बहा दे
फिर भी नकारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
मूक बन हर विपत्ति सह
पराश्रयी बन जलती जाती
परिंदों को आकर्षित कर
जलाने का पाप भी सह जाती
फिर भी दुत्कारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
जीवन पथ पर तिल तिल जलती
आघृणि नहीं बन कर शशि
हर घर को तेज से अपने
रौशन करते हुए है चलती
फिर भी धिक्कारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
अपना अस्तित्व कब खोज पायेगी
दूसरों के लिये नहीं अपने लिये
ये भी मुस्कुराकर जी जायेगी
बनावटी नहीं खालिस बन
कब पहचानी जायेगी??
वो अधजली लौ