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Showing posts from August, 2010

तुम इन्सान हो

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इन खामोशियो  के रहते , कोई बात जुबान  पे लाना , आसान नहीं| जो कहना है  कह दो, तुम इन्सान  हो भगवान नहीं |  २००६ दीप्ति शर्मा   

मेरी कहानी

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वो किस्सा था या कहानी थी बात थी दिल की जो कि, बस दो लफ्जो में बतानी थी | कही जो बात दिल से थी वो कुछ बाते बड़ी रूमानी थी\ वो अंदाजे वफ़ा जो कभी, शिखर तक उसकी जुबानी थी| हाल-ये-दिल उल्फत में, बयां कर गया कुछ बातें वो कुछ लम्हों कि निशानी थी| जब राहें बनाये थी मैंने | सहारा ले कुछ पत्थरों का वो राहें भी तो अनजानी थी| मुकद्दर था ही नही रौशन , तभी तो वो दिल कि बातें मेरी तबाही कि निशानी थी अंगारे बन गये वो बाते बातों भरी वो मेरी कहानी थी | २००९    दीप्ति शर्मा

दिल मेरा ना पहचान सका

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दिल मेरा ना पहचान सका उसको जिसको मै चाहती थी| दिल की बगिया में फूल समझ मैं ख़ुशी ख़ुशी इठलाती थी | चाहत की बगिया सींच कहीं मै अपनी प्यास बुझाती थी | दिल मेरा ना पहचान सका उसको जिसको मै चाहती थी| २००७ दीप्ति शर्मा 

जख्मो पे मरहम लगाते रहे

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अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे, ढूंढ़ते रहे किसी को की कोई अपना हो, और लोग हमें हर वक़्त आजमाते रहे, अपनी खुशियों की परवाह नही की लुटा दी हर ख़ुशी सब की ख़ुशी के लिए हर रूठे को हम तो मनाते रहे , अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे| कहा था सबने मुझे कुछ मिलेगा नही. जानते थे फिर भी ना जाने क्यों? हम किस्मत को खुद से छुपाते रहे , अपने अश्को को आँखों से बहाते रहे, दिल मे किसी के सपने सजाते रहे, अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे| भटकते रहे जिन्दगी तलाशने को, सोचा लम्हों का सहारा मिलेगा मुझे, तमन्नाओ को अपना सहारा समझ , हम एहसासों से दामन छुडाते रहे , उलझी जिन्दगी को सुलझाते रहे, अपने जख्मो पे मरहम लगाते रहे| २००८ दीप्ति शर्मा 

विश्वास

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नहीं होता  विश्वास उन बातों पे, ना जाने दिल क्या चाहता है तुझ पे विश्वास है खुद से ज्यादा पर क्यों नही आज यकीं होता है सोचा की ये यकीं मजबूत है बुलंदियों पे है होसला  मेरा तुझे चाहने का तुझे पाने का पर अब मेरे इस दिल को नही होता विश्वास उन बातों पे | जिसकी हर बात पे आँखे मूंद मैने विश्वास किया कभी पर आज ये डगमगा रहा क्यों? नहीं विश्वास होता उन ख्वाबो पे जो इन आँखों ने देखे तुझे पाने के दिल इतना कमजोर कैसे हो गया विश्वास था जिस पे खुद से ज्यादा क्यों आज उसकी बातों पे कैसे भी विश्वास नहीं होता |

हमारी जिंदगी

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ये हमारी कैसी जिंदगी है कितने ही लोग मिलते हैं कितने ही बिछड़ जाते हैं जो कभी हमारे  अपने , तो कभी पराये लगते हैं \ गमो के बादल बरसते हैं कभी यूँ ही गरजते हैं | हम इन गमो में गिरते, गिरते संभलते हैं कई आँखों मे उतरतें हैं , और दिल मे बस जाते हैं , वो हमें अपना बनाते हैं और हमारे बन जाते हैं बस ऐसी ही जिन्दगी है ये हमारी कैसी  जिन्दगी है

जिन्दगी

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हाँ ये वही किनारा है तुफानो पे खड़े हो , किसी ने पुकारा है | बरस रहे हैं मेघ छा गयी घटाए भी ये कुदरत का इशारा है  की हमारे दिल में गम बहुत सारा है हमारे अपनों का साथ ही, हमारे जीने का सहारा है, अब ऐसा लगता है ये सारा जहाँ  हमारा है |

मैं

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मैं कुछ लिखना चाहती हूँ , हूँ तन्हा पर पता नहीं , पर जिंदगी से अनजान , इस कायनात में रहकर  कुछ नाम कमाना चाहती हूँ | जो मुझे मेरी मंजिल दे , और  दे वो मुझे सारी ख़ुशी , अनजानी उन खुशियों को , दिल से महसूस कर , जिंदगी को जीना चाहती हूँ | ख्वाबो को पूरा कर मैं, इस नीले गगन के नीचे, पक्छियो की तरह पंख फैला , आज़ादी  से उड़ना चाहती हूँ | मैं जिंदगी की राह मे , बहुत दूर जाना चाहती हूँ |

तेरी राह

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ढूंढा हर किनारा, हर महफ़िल तलासी, हर गली ढूंढ़ ली हर राह , पर तेरी राह ना मिली | उस किनारे पे जहाँ , हम मिले थे कभी, वहा जहाँ बीते लम्हे, गुजरे थे कभी| ढूंढ़ ली हर राह, पर तेरी राह ना मिली| तेरी यादो को ढूंढा, तेरी बातों को ढूंढा, तेरे चलने के उन, पदचिन्हों को ढूंढा, ढूंढ़ ली हर राह, पर तेरी राह ना मिली |

किसी पे फ़िदा कभी होना नहीं

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मुकम्बल फ़साना है दिल का यही, तुम किसी पे फ़िदा कभी होना नहीं| तुम्हारे दिल मैं है मोहब्बत अगर, तो अपने कदम पीछे करना नहीं, किनारे पे तुम जो रपट भी गये , तो ये जमाना तुम्हे छोड़ेगा नही| चाहते हो जो तुम ज़माने से , बचना ये मेरे प्यारे दोस्त, भूल से भी तुम प्यार करना नहीं, रस्ते हैं कठिन सच के सारे मगर, झूठ का साथ कभी देना नहीं| तेरे दिल में हैं अगर लाख गम , चेहरे पे सिकन कभी लाना नहीं, मुस्कुराते तू रहना सदा मेरे दोस्त, मुझसे कभी गम छुपाना नहीं \ दोस्ती जिन्दगी का ऐसा साथ है , जो सदा साथ दे ना छूटे कभी, दोस्त तुझसे कहूँगी मैं तो यही , मुकम्बल फ़साना है दिल का यही, तुम किसी पे फ़िदा कभी होना नहीं | - दीप्ति शर्मा

मैं

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सोचा है कौन हूँ मैं एक अभिलाषा या कोई परिभाषा हूँ| मासूम कमल की, खिलती कली हूँ  मैं| जिंदगी से हूँ मैं या, किसी की जिंदगी हूँ, उलझनों से घिरी, एक मिसाल हूँ मैं | कोई सवाल या , खुली किताब हूँ मैं| सोचा करती हूँ , आखिर कौन हूँ मैं |

तूने,

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कैसी घडी ला खड़ी की तूने, न कोई तमन्ना न कोई आरजू, सितम भी खूब आया , रस्मो रिवाजो को तोड़ डाला, दुनिया से  बेखबर ऐ हंसी , कैसी घडी ला खड़ी की तूने | दुनिया से रुक्तबू होने से पहले सरमिन्दगी महसूस होने से पहले , अँधेरे राश्ते मैं यूँ मुझे तन्हा छोड़कर चली गयी दुनिया से  बेखबर ऐ हंसी , कैसी घडी ला खड़ी की तूने |

वो एक सपना था

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जब प्यास लगी तो मैने देखा , पानी था नही मदार में , वो तो बिक रहा कोडियो में , उन अफसरों की दुकान में| उस पानी को लेने पहुंचे, हकीम और सुनार हैं मैं पीने पहुंची उस पानी को , वो पानी नही शराब थी , अचरज मे जिसने डाल दिया , गहरी निद्रा को हिला दिया मुझे नीद से जगा दिया , वो सपना मेरा तोड़ दिया|

कोई होता

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जिंदगी की विरान महफ़िलो में, कोई उजाला तो होता | इस  दुनिया की भीड़ में , मेरा कोई सहारा तो होता | जो थाम लेता हाथ मेरा , कभी दुखी ना होने देता, वो मेरे साथ साथ , कदम से कदम मिला , हर राह पे चलता , मेरी मंजिल वो ही होता , जो सिर्फ मेरा होता, काश ऐसा भी कोई, मेरी जिंदगी मे होता | - दीप्ति शर्मा 

ख़ामोश रही मैं|

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क्यूँ तुझे पाने तक, तेरे पास आने तक, यूँ ख़ामोश रही मैं| लेके एहसास  तेरा, दिल में  प्यार तेरा, यूँ  ख़ामोश रही मैं | अजनबी परछाई थी , अश्क आँखों में लिए, तेरी याद बहुत आई थी, याद लिए तेरी दिल में, यूँ ख़ामोश रही मैं| जब से तू चला गया, तेरी वो महक तब से, इस तन में समायी थी, तू समा जाये मुझमें , मैं समाऊं तुझमे, ये सोच आज तक , यूँ ख़ामोश रही मैं| जैसे  तेरे आने की, दिल को आहट थी | - दीप्ति शर्मा 

वक़्त जो गुजर गया

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वक़्त तो  गुजर जाता है पर यादें  छोड़ जाता है | यादों के सहारे कैसे  जिया जा सकता है जीने के लिए सहारे की जरुरत होती है पर जब वो सहारा ही ना हो तो........... वक़्त बहती हुई  सरिता के समान है जो हमेशा आगे  बढता रहता है वो पीछे के रस्ते नही देखता ना ही देखना चाहता है | वक़्त की कमान को हाथ मे लिए कब तब चला जा सकता है , कुछ ही लोग होते हैं जो वक़्त के साथ साथ चलते हैं और कुछ सोचते ही रह जाते हैं और वक़्त निकल जाता है | एक लड़की जिसने वक़्त की पाबन्दी को समझा , जाना ,परखा इसलिए ही तो वो हमेशा वक़्त के साथ चली पर ये अचानक क्या हुआ किसी पर अत्यधिक विश्वास  घातक सिद्ध हुआ | जो नही चाहती थी वही हुआ | उस रहम दिल, सच्चाई परस्त लड़की को एक  दिन इतना बड़ा धोखा मिलेगा जिसके होने का तनिक भी आभास नही था | जिस पर उसने इतना भरोसा किया जिसे वो प्यार करती वो उसे छोड़ के किसी और का हो लिया अब वो पूरी तरह टूट चुकी थी लगता था अपनी जिंदगी से हर गयी हो, उसे लगता था की अब उसके पास कोई और रास्ता बचा ही नही है अब बस एक ही रास्ता बचा है वो है मौत | वो अपने आप को ख़तम कर लेना चाहती थी ,क्या हर एक सच्चे प्यार करने

दर्द

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जब भी उसे देखती ये दिल सिहर उठता, उसकी खामोश बेचेनी से भरी आँखे आंसुओ  के सहारे सब कुछ बायान कर देती | वो कुछ भी ना कहते हुए भी सब कुछ कह जाती | उन आँखों में जितना दर्द था , उतनी ही तड़प भी | तड़प तड़प के जीना कितना दुश्वार होता है लेकिन मजबूरियां तो देखो जिसने उसे तड़प कर जीने पर मजबूर कर दिया, जिन्दगी तो मानो वीरान ही हो गयी, देखकर उसे एसा लगता मानो जीने की तमन्ना  विलुप्त हो रही हो| ना रोती थी, ना हँसती  थी, और कभी कभी रोते हँसते  अपना आपा ही खो बैठती| लोग तो उसे पागल समझने लगे पर किसी को क्या पता कितने दर्द सहे थे उसने , अपनों से दिया गया वो दर्द उसे हर समय सुई के समान चुभता ,पर किसी ने उसकी तड़प ना समझी , पागल समझ पागलखाने में  डाल दिया , जहा उसकेl साथ जानवरों से बत्तर सलूक किया जाता , अंततः तड़प की सीमा टूटी, दर्द का अंत हुआ और उसका अंत हो गया\ वह बर्दाश्त नही कर सकी, और अपने  दर्द को जगजाहिर  ना करते हुए अपने साथ ले गयी |

ये जिंदगी का झरना

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