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Showing posts from May, 2011

मेरा साया

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खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | मुग्ध हो कुछ राग अलापे , मगरूर हो मंजिल तलासे , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | सुर्खी लिए होंठो पर अपने , नये द्रष्टिकोण को अपनाया , प्रभात का ये उजियारा , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | सहजभाव से ले संकल्प , कुछ  क्षण  में   हैं मूक स्वर , उन स्वरों से उ ऋण, जिजीविषा को थामे , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया |  -दीप्ति शर्मा 

कलम

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ये  मेरे साथ रहती है और सारे दर्द सहती है पर जिन्दगी से इसे बहुत हैरानी है ना ही हँसती ना ही रोती ये लिखती मेरी कहानी है|   वो अल्फ़ाज मेरे   दिल की धडकन के   सब इसकी जुबानी है   ये लिखती मेरी कहानी है | निगरा समझ वो मेरा सारा जहाँ  बताती है समझ मुझे लिखा उसने ये उसकी मेहरबानी है ये लिखती मेरी कहानी है|   रुके हुए कुछ झुके हुए   मेरे अश्कों में उसकी   हर वक्त निगरानी है   जब इसकी जुबानी है   ये लिखती मेरी कहानी है | -दीप्ति शर्मा