मेरा साया
खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | मुग्ध हो कुछ राग अलापे , मगरूर हो मंजिल तलासे , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | सुर्खी लिए होंठो पर अपने , नये द्रष्टिकोण को अपनाया , प्रभात का ये उजियारा , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | सहजभाव से ले संकल्प , कुछ क्षण में हैं मूक स्वर , उन स्वरों से उ ऋण, जिजीविषा को थामे , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | -दीप्ति शर्मा