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तुम

मैंने तुम्हारे पसन्द की चूल्हे की रोटी बनायी है  वही फूली हुयी करारी सी  जिसे तुम चाव से खाते हो  और ये लो हरी हरी  खटाई वाली चटनी  ये तुम्हें बहुत पसन्द हैं ना !!!  पेट भर खा लेना  और अपने ये हाथ  यहाँ वहाँ ना पौछना  मैंने अलमारी में  तुम्हारी पसन्द के सफेद  बेरंगे रूमाल रख दिये हैं  ले लेना उन्हें....  सब रंग बिरंगे रूमाल  हटा दिये हैं वहाँ से  वो सारे रंग जो तुम्हें पसन्द नहीं  अब वो दूर दूर तक नहीं हैं  तुम खुश तो हो ना??  सारे घर का रंग भी  सफेद पड़ गया है  एकदम फीका  बेरंगा सा...  मैंने भी तो तुम्हारी पसन्द की  सफेद चुनर ओढ़ ली है  अब तो तुम मुस्कुराओगे ना??  साँझ भी हो चली अब  पंछी भी घरौंदे को लौटने लगे  तुम कहाँ हो??  आ जाओ!!  मैं वहीं आँगन में  नीम के पेड़ के नीचे  उसी खाट पर बैठी हूँ  जो तुमने अपने हाथों से बुनी थी  कह कर गये थे ना तुम  कि अबकि छुट्टीयों में आओगे  वो तो कबकि बीत गयी  तुमने कहा था  मैं सम्भाल कर रखूँ  हर एक चीज तुम्हारी पसन्द की  देखो सब वैसा ही है   तो तुम आते क्यों नहीं  क्यों ये लोग तुम्हारी जगह  ये वर्दी, ये मेड
ये आँसू नहीं हैं पागल किसने कहा तुमसे? कि मैं रोती हूँ अब मैं नहीं रोती मेरे भीतर बरसों से जमी संवेदनाएँ पिघल रही हैं धीरे धीरे भावनाएँ रिस रही हैं खून जम गया है और मन की चट्टानें टूट रही हैं मेरे पैर थक गये हैं और मैं थम गयी हूँ स्थिर हो गयी हूँ तो अब भला मैं क्यों रोऊँगी??  - दीप्ति शर्मा