दिल पर तुम यूँ छा रही हो लगता है पास आ रही हो जुल्फ़ों के साये में छुप मुझे देख हाय यूँ इतरा रही हो कातिल मुस्कुराहट से तुम दिल की कली खिला रही हो रुख से अपने बलखा रही हो मुत्तसिर हो तुम मुझसे करीब आ मेरे दिल के क्यों मुझसे शरमा रही हो © दीप्ति शर्मा
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फसल
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वर्षों पहले बोयी और आँसूओं से सींची फसल अब बड़ी हो गयी है नहीं जानती मैं!! कैसे काट पाऊँगी उसे वो तो डटकर खड़ी हो गयी है आज सबसे बड़ी हो गयी है कुछ गुरूर है उसको मुझे झकझोर देने का मेरे सपनों को तोड़ देने का अपने अहं से इतरा और गुनगुना रही वो अब खड़ी हो गयी है आज सबसे बड़ी हो गयी है । वो पक जायेगी एक दिन और बालियाँ भी आयेंगी फिर भी क्या वो मुझे इसी तरह चिढायेगी और मुस्कुराकर इठलायेगी या हालातों से टूट जायेगी पर जानती हूँ एक ना एक दिन वो सूख जायेगी पर खुद ब खुद © दीप्ति शर्मा