रोटी सिकने के दौरान, चूल्हे में राख हुई लकड़ी का दर्द कोई नहीं समझता, बस दिखता है तो रोटी का स्वाद। ( #जिन्दगी का सच )
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वो रेल वो आसमान और तुम
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रेल में खिडकी पर बैठी मैं आसमान ताक रही हूँ अलग ही छवियाँ दिख रही हैं हर बार और उनको समझने की कोशिश मैं हर बार करती कुछ जोड़ती, कुछ मिटाती अनवरत ताक रही हूँ आसमान के वर्तमान को या अपने अतीत को और उन छवियों में अपनों को तलाशती मैं तुम्हें देख पा रही हूँ वहाँ कितने ही पेड़, बेंच, कुआँ, सड़क, नाला,पहाड़ निकलते चले जा रहे हैं इन्हें देख लगता है इस भागती जिदंगी में कितने साथ छूटते चले गये मन के कोने में कुछ याद तो है ही अब चाहे अच्छी हो ,बुरी हो और मैं उन्हें ढोती ,रास्ते पार करती तुम्हें खोज रही हूँ बहुत बरस बाद आज , मन के कोने से निकल दिखे हो वहाँ बादलों की छवियों में और मैं तुम्हें निहार रही हूँ।