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Showing posts from September, 2010

ज़िम्मेदार कौन ?

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उम्र महज ५ बरस , और मासूम मन  में हैं कई सवाल ,इस उम्र मे ही माँ बाप  का अलगाव , वो विछोह जो उसके नन्हे दिल मे कई सवाल ले आता | उस बाल मन को झकझोर देने वाली ये घटना उसके मन में ऐसा प्रभाव डालेगी की कोई सोच नही सकता| समय बीता|  वो बड़ी हो गयी  बाप का साथ नहीं है, और माँ दिन भर पार्टी और पोलिटिक्स में व्यस्त रहती | वो कॉलेज जाने लगी , वहा उसे हमउम्र लड़के से  प्यार हो गया, पर कुछ समय बाद वो डोर टूट  गयी  जिससे वो परेशान हो गयी और उसने पुलिस का सहारा लिया और लड़के को जेल भिजवा दिया | वो इतना परेशान थी की कोई चाहिए था उसे जो उसका अपना हो | तभी उसकी मुलाकात विक्की से हुई जो अपराधी प्रवत्ति  का था |धीरे धीरे वो उस से प्यार करने लगी और उसके साथ रहते हुए वो भी गुनाह के रस्ते पर चल पड़ी | फिर क्या था ? वो उसके साथ लोगो को ठग रही थी कई बार कई जगह , सिलसिला थमा नहीं और एक दिन वो पुलिस के हाथ लग गयी उसके पास करोडो रुपये थे जो उसने इस तरह कमाए | आज वो जेल में है | एक लड़की के गेंगेस्टर बन जाने की यह कहानी सबके लिए सबक है  पर इसके लिए जिम्मेदार कौन?

ये कैसी रौशनी

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जब  कभी  हम बहुत दूर जाना चाहते हैं  और बिना सोचे चल देते हैं  तो कभी उसका परिणाम भयावह भी हो सकता है  इसे कविता तो नहीं कहुगी पर ये वो  शब्द  हैं जो मेरे दिल ने कहे.... दूर  जहाँ रौशनी थी , कदम बढाये थे उसने , हौसला  भी तो  था| था  उल्लास  इतना कि , सब  भूल पहुँचाना चाहती थी  वो तो, उस रौशनी तक | डगमगा रहे थे कदम  ना जाने कितनी , दूर हो मंजिल | बस एक आभास, ही तो था उस  रौशनी  , के दूर होने का| जो अपने पास , उसे बुलाती थी\ उमंग थी उसे उस रौशनी मे समा जाने की| उसके आगोश मे  लिपट जाने की | दर्द झेल सामना , किया था मुस्किलो का, पहुँचने को रौशनी   तक\ आखिर पहुच गयी , उस रौशनी तक  अपनी मंजिल समझ | नादाँ थी  लगा था  एक वही मंजिल है जब पहुंची उसकी , गिरफ्त मे तो जाना  वो कोई रौशनी  नही , वो तो आग थी\ जिसने बैखोफ  उडती हुई उस चिड़िया के पंख  को ही जला दिया| उसे पहुँचाना तो था  अपनी मंजिल तक  पर  रौशनी  की चाह, मे वो पंख फेला , अंधकार मे पहुँच गयी | वो अंधकार जहाँ  से लौट  के  आना  मुमकिन ही नहीं, रौशनी  की चाह मे  जो बढाये थे कदम   वो कदम  ही उसे

कैसी इंसानियत

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आज सुबह ही वो माँ का आशीर्वाद ले काम पर निकला , कितना खुश था अपनी धुन में मस्त , रोज कि तरह वो काम पर पहुँच गया | वहां पहुंचकर उसे पता चला कि आज उसे बहुत जरुरी काम करना है | कुछ रुपये है वो बैंक मै जमा करने हैं, करीब १२ लाख रुपये हैं| इतनी बड़ी जिम्मेदारी समझ , और मालिक का हुकुम भी तो है तो करना तो है ही| तो उसने bike ली और अपने एक साथी के साथ चल दिया | पर कुछ कदम दूरी पर ही कुछ लोगो ने उसे रोका और उसकी आँख मे लाल मिर्ची पावडर डाल दिया और रुपयों का बैग छिनने लगे उसने नही दिया, देता भी कैसे किसी और कि अमानत जो थी उन लोगो ने उसे गोली मार दी और बैग लेके भाग गये |वो वही  तडपता रहा और लोगो ने उसे अस्पताल तक ले जाने कि गनीमत नही कि और तो और अपने खिड़की दरवाजे भी लगा लिए और आँखे बंद कर बैठ गये | और उसने तडपते हुए वहीँ दम तोड़ दिया| आखिर क्यों लोग सब जानते हुए भी गलत लोगो का साथ देते हैं उनका विरोध नही करते | हमलावर कुछ ही लोग थे अगर सारे लोग डरे बिना , मिलकर उन्हें पकड़ते | वो कुछ रहम दिखा देते तो शायद   वो पकडे जाते और उसकी जान बच जाती , उस माँ कि कोख सुनी नही होती | क्या ये ही इंसानियत

मेरी जिंदगी

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मिली थी कभी जिंदगी मुस्कुराकर | मेरा साथ दे  ख्वाबो में समाकर | अपने अश्को को  मेरी आँखों से बहाकर | ख़ामोशी से अपनी  मुझे तड़पाकर| चली गयी वो  कहना तो चाहती थी पर खामोश हो गयी मुझे रुलाकर|