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Showing posts from 2011

चाहा था उन्हें

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कसूर इतना था कि  चाहा था उन्हें दिल में बसाया था उन्हें कि मुश्किल में साथ निभायेगें ऐसा साथी माना था उन्हें | राहों में मेरे साथ चले जो दुनिया से जुदा जाना था उन्हें  बिताती हर लम्हा उनके साथ  यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें  किस तरह इन आँखों ने दिल कि सुन सदा के लिए  उस खुदा से माँगा था उन्हें  इसी तरह मैंने खामोश रह  अपना बनाना चाहा था उन्हें | -  दीप्ति शर्मा 

लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं

लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं , आवाज दे अपनी सामने लाऊँगी तैयार कर धुन उसकी  सबको वो ग़ज़ल सुनाऊंगी अभी तो लिख रही हूँ फिर बाद परीक्षा के सुना पाऊँगी लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं  आवाज़ दे अपनी सामने लाऊँगी  कुछ महकी बात सुनाऊंगी कुछ हँसाती सी कुछ रुलाती सी वो ग़ज़ल जल्द ही ले आऊँगी थोडा इंतज़ार कर लीजिये फिर तो इसकी धुन मैं आपके कानों तक पहुंचाऊँगी बस मैं गुनगुनाती जाऊँगी लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं आवाज़ दे अपनी सामने लाऊँगी तो मिलते हैं परीक्षा के बाद !!!!!!!! - दीप्ति शर्मा

जन्मदिन

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आज मेरी प्यारी बहिन का जन्मदिन है और मैं बहुत खुश हूँ ,, मेरी तरह से उसे ढेरो शुभकामनाये ,,, कृपया आप भी अपना बहुमूल्य आशीर्वाद उसे प्रदान करें | आज जन्मदिवस पर तेरे , ओ मेरी प्यारी बहिन दुलार करते हैं सभी प्यार करते हैं सभी हजार ख्वाहिशें जुडी हैं माँ पापा की तुझसे रौशन है ये आँगन तुझसे कह दे तू ये आज मुझसे न दूर हो हम कभी भी अब एक दूजे से जफ़र पा ओ मेरी बहिन घर जल्दी आना तू अबकी आँखों का तारा हैं तू सबकी तेरा सपना सच हो जाये हर ख्वाहिश पूरी हो जाये जन्मदिन पर मिले तुझे सबका इतना आशीष की हर बाला आने से पहले ही टल जाये जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो प्रीती . - दीप्ति शर्मा 

एहसास - ए- दिल

१. हंसाने वाले  मुस्कराहट  दे  ,, खुद भी मुस्कुराते  हैं . तो  क्या यूँ  सबको रुलाने वाले भी,,, कभी किसी के लिए आंसूं  बहाते हैं  २.मैं हूँ उन लहरों की तरह  जो ऊँचाई छुआ करती हैं  मिल जातीं हैं रेत से पर  खुद के अस्तित्व को कायम रखती हैं | दीप्ति शर्मा 

कैसी होगी वो मुलाकात |

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जाने दिन होगा या रात  कैसी होगी वो मुलाकात, अंधियारे को भेदती  मंद मंद चाँद की चांदनी  और हल्की सी बरसात  कुछ शरमीले से भाव  कुछ तेरी कुछ मेरी बात  अनजाने से वो हालत  कैसी होगी वो मुलाकात | आलम-ए-इश्क वजह  बन तमन्नाओं से  सराबोर निगाहों के साये  में हुयी तमाम बात  तकते हुए नूर को तेरे ठहरी हुयी सी आवाज  अनजाने से वो हालात कैसी होगी वो मुलाकात | 

गुनगुनाती रही

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मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों  में फंसी खुद को मनाती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | आँखों में सपने सजाती रही  धडकनों को आस बंधाती रही  मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी  यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही  याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही  हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही  खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही | - दीप्ति शर्मा 

हमारे गोल मोल सर

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आँखों में चश्मा , चेहरा है गोल  पढ़ाते रहते वो हमें  गोल मोल  बोर्ड पर लिखते है इतना और  हमेशा बोलते है ओर ओर | कहते हैं वो इतना मधुर कि बोलते उनके सो जाते सारे लोग  फिर भी वो नही रुकते और  पढ़ाते रहते वो हमे गोल मोल | हाथों में  पेपर चौक थाम के  कितना पढ़ाते हैं बार बार | कद है छोटा तन तन है मोटा  पढ़ने में है थोडा खोटा नंबर देता छोटा मोटा | टुकुर टुकुर यूँ देखे सबको  क्यों देखे ये पता नहीं  मन ना हो पढने का फिर भी  लिखते है वो मोर मोर  पढ़ाते रहते हमे गोल मोल | -  दीप्ति शर्मा 

वो

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आंचती हुई काजल को वो कैसे मुस्कुरा रही है |, लुफ्त उठा जीवन का मोहब्बत की झनकार में अपनी धुन में मस्त उसकी पायलियाँ गीत गा रही हैं | केशो को सवारकर  चुनरी ओढ़ वो घूँघट में लज्जा से सरमा रही है | साज सज्जा से हो  तैयार खुद को निहार आइने में नजरे झुका और उठा रही है | इंतज़ार में मेरे वो सजके भग्न झरोखे में छिपकर मेरा रास्ता ताक रही है | - दीप्ति शर्मा 

कब

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कैद हैं कुछ  यादों के भंवर  जो सुलगते हैं  पर पिघलेगे कब ? - दीप्ति शर्मा 

भ्रष्टाचार आन्दोलन के "साइड इफेक्ट"

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  बहुत सारी भीड़ है | वो देश सुधार और भ्रष्टाचार को मिटाने का आन्दोलन कर रहे हैं ,  सारी सड़के जाम हैं , जनता बेहाल है , सरकार का बुरा हाल है , ये समाधान है या  कोई व्यवधान है जो  यहाँ हर कोई परेशान है   तभी एक एम्बुलेंस दूर से आती है , उस भीड़ में वो फंस  जाती है , मरीज की हालत गंभीर है पर कोई उसे निकलने नही दे रहा है क्यूँ की  वो समाज सेवी है और देश का सुधार कर रहें हैं | नारें लगा रहें वो देखो  लोगो का हुजूम बना  और समाज चला रहे हैं  वो जो तड़प रहा है अंदर  देख उसे नजरे झुका रहे हैं  न ही वो उनका सगा है  न ही सम्बन्धी है फिर  क्यों दिखावे में नहा रहें हैं  तड़प रहा है वो इलाज को  और देखो ये सब यहाँ  भ्रष्टाचार मिटा रहे हैं | बहुत सारी भीड़ इकट्ठी है , सरकार के खिलाफ कुछ हैं जो सच में साथ हैं और कुछ लोग दिमाग से वहा और मन से दफ्तर में हैं , जहाँ कोई आएगा घुस देके जायेगा , वो दलाल है सरकार के जिनके आँखों में हमेशा से ही पट्टी बंधी है | सरकार के खिलाफ बन खड़ें हैं हाथों में मशाल लिए अड़े हैं  दिल से यहाँ पर दिमाग से वहां  जहा घुस

तेरे लाज के घूँघट से

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                                             उमड़ आयी बदली  तेरे लाज के घूँघट से  द्वार पर  खड़ी तू  बेतस बाट जोहती  झलक गये तेरे केशू तेरे आँखों के अर्पण से | पनघट पे तेरा आना  भेष बदल गगरी छलकाना  छलक गयी गगरी तेरी  तेरे लाज के घूँघट से | सजीले पंख सजाना  प्रतिध्वनित  वेग से  झरकर गिर आयी  तेरे पाजेब की रुनझुन से | रागों को त्याग  निष्प्राण तन में उज्जवल  उस अनछुई छुअन में  बरस गयी बदली  तेरे लाज के घूँघट से  उमड़ आयी बदली  तेरे लाज के घूँघट से  - दीप्ति शर्मा                                                     

समझो गर तुम

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                                                शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी  फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ | उलझी हूँ अपनी ही कुछ बातों से  फिर भी तो जिन्दगी की मैं आस हूँ | क्यूँ ढूंढते हो मुझमें वो खुशियाँ  मैं तो अपने जीवन से निराश हूँ | कोई अनजाना डर तो है दिल में वजह से उसकी ही मैं उदास  हूँ | ज़िन्दगी जो अनजान है मुझसे  रंजों से ज़िन्दगी की मैं हताश हूँ | - दीप्ति शर्मा 

अस्तित्व की तलास

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                                               दुनिया में रह मुझे उन तमाम  हस्तियों को पहचानना ही पड़ा | हर नए सफ़र की मुश्किलों को उन उलझनों को अपना समझ  दिल से उन्हें मानना ही पड़ा | जहाँ में खोये हुए अपने वजूद को इत्मिनान से तलाशना ही पड़ा | अपने कुछ उसूलों की खातिर  उस अस्तित्व को खोजते हुए मुझे अपने आप को जानना ही पड़ा | - दीप्ति शर्मा 

दिल- ए- एहसास

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                                                         १.आपके चले आने से  दिल को करार आ जाये  जरा मुस्कुरा तो दीजिये  इस महफ़िल में भी  जान आ जाये|                                                                                                         २. कहो ना कुछ पर ये  निगाहें बोल जाती हैं  दिल की बातें निगाहों  से ही की जाती हैं|                                                     ३. आँखों में बसकर  दिल में उतर गये हो  इस तरह तुम हमें  अपना दीवाना कर गये हो| दीप्ति शर्मा 

अन्ना तेरी अगवानी में|

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                                          क्या करूँ मैं व्याख्यान  निरुत्तर हो गयी सरकार अब हो रहा समाधान  अन्ना तेरी अगवानी में| अंहि बन देश के गौरव का  अजब का उत्साह है  हम सब का साहस बढा अन्ना तेरी अगवानी में| अधिप बन शासन किया  फैलाया भ्रष्टाचार सरकार ने  पर अब हो रहा समाधान अन्ना तेरी अगवानी में| अंतस से उठी आवाज़  और है लोगो का साथ  अब हो रहा समाधान अन्ना तेरी अगवानी में| अदबी समाज साथ है कलम उनके हाथ है हौसला बढ रहा हमारा अन्ना तेरी अगवानी में| मुफ्तखोरी बन बहुत खाया  लोगो को खूब नचाया  अब हो जाएँ ये अंतरध्यान अन्ना  तेरी अगवानी में|   - दीप्ति शर्मा 

क्यों?

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                                                      इन हौसलों में आके  भी आँखों में नमी क्यों?  राहें चल रही हैं पर  मंजिल की चाह में है जमीं थमी क्यों? है आँखों में नमीं क्यों? अपनों के साथ भी हूँ मैं अब हरदम  फिर भी न जाने क्यों? है किसी की कमी क्यों?  हैं आँखों में नमी क्यों?  - दीप्ति शर्मा 

मेरी बहन

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                                                   आज बैठी हूँ और  सोच रहीं हूँ तुझे  तुझसे मिलने को मन  करता है और कहता है  आजा मेरी बहन घर सूना है तेरे बगैर | जब खाते थे एक ही थाली में खाना  लड़ना झगड़ना और  रूठ के मान जाना  आजा मेरी बहन घर  सूना है तेरे बगैर | एक्टिवा पर बाज़ार  निकल घूमना पूरे दिन  पर अकेले मन नही  करता अब तो जाने का  आजा मेरी बहन घर  सूना है तेरे बगैर | एक साथ स्कूल जाना  खेलना खाना और पढना हँसना खूब मस्त रहना  अब तू हम सबके पास  आजा मेरी बहन घर  सूना है तेरे बगैर | माँ भी पूछती है  अब कब आयेगी तू   तेरी याद करती है और  हम तारें हैं उनकी आँखों के  कैसे रह पायेगी वो  यूँ दूर हमसे तो अब  आजा मेरी बहन घर  सूना है तेरे बगैर | -दीप्ति शर्मा                                                                 

अनकही बातें

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                                                                         (मेरे नए ब्लॉग पर पहली रचना ) अनकही बातें जो दिल कहे बस कह दीजिये यहाँ दिल में उठे हर ज़ज्बात वो बातें जो कहीं ना हों  बस महसूस की गयी हो  वो अनकही बातें  आँखों के पलछिन में छुपी कुछ आहटें  वो अनकही बातें  उम्मीद सभी की ले  कह गयी मैं यहाँ  वो अनकही बातें | - दीप्ति शर्मा  http://deepti09sharma02.blogspot.com/

ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ

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आज मेरा सफ़र एक सीढ़ी चढ़ गया , बहुत कुछ पाया यहाँ  रहकर मैंने  , कितना कुछ सीखा तो आज इस अवसर   पर  बस यही कहना चाहती हूँ -                                                                                                  आज ब्लॉग आकाश में असंख्य तारों के बीच चाँद सा प्यार दिया मुझे  इस ब्लॉग परिवार ने |                                                        हर सुख दुःख में  साथ निभाया है और बहुत कुछ सिखाया है  इस ब्लॉग परिवार ने | एक साल गुजर गया  पर यूँ लगता है जैसे  सदियाँ बीत गयी हो  आप सब का साथ पाकर | लगते हैं यहाँ सब अपने  नही यहाँ गैर कोई बहुत सा प्यार दिया  इस ब्लॉग परिवार ने | गलतियाँ जब हुई  उचित मार्गदर्शन कर  सही राह दिखाई   इस ब्लॉग परिवार ने|                                                              जफ़र पथ पर चलकर मैं अब साथ चाहती हूँ  हरदम आशीर्वाद चाहती हूँ   इस ब्लॉग परिवार से | छोटो का स्नेह मिले   बड़ों का आशीष बस इतना अधिकार चाहती हूँ  इस ब्लॉग  परिवार से | - दीप्ति शर्मा                                                       

नदी

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                                                       कलकल करती सब कुछ सहती, कभी किसी से कुछ ना कहती , अनजानी राहों में मुड़ती बहती , चलती रहती नदियाँ की धार| लटरें भवरें सब हैं सुनते , साथ में चलती मंद बयार , कौतूहल में सागर से मिलती पर , चलती रहती नदियाँ की धार | जुदा हो गयी हिम से देखो , तट से लिपट बहा है करती, सुनकर वो मस्त बहार, फूल पत्तियाँ जलज औ पाथर, पथ में आए बार बार , अपने मन से हँसती गाती, चलती रहती नदियाँ की धार |    दीप्ति शर्मा

आखिर क्यूँ ?

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                                                   मंज़िल तो हैं सीधी पर  रास्ते ये सारे मुड़े क्यूँ हैं ? और तकदीर से ये हमारी जुड़े क्यूँ हैं ? जब होती नहीं कोई भी मुराद पूरी तो  दर पर ख़ुदा के  इबादत को इंसा के सर झुके क्यूँ हैं ? ख़ुदा ना ले इम्तिहान कोई अब हमारा  तो कभी यूँ लगे कि इम्तिहानों के सिलसिले  रुके तो रुके क्यूँ  हैं ? सुन ले ए ख़ुदा अब    हमारी हर मुराद  जब मुराद ना हो पूरी  तो लगे कि अब  ख़ुदा कि फ़रियाद में ये हाथ खड़े क्यूँ हैं ?  तेरी रहमत को ये ख़ुदा  हम खड़े क्यूँ हैं ? पाने को हर सपना  आखिर हम अड़े क्यूँ  हैं ? - दीप्ति शर्मा 

मेरा साया

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खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | मुग्ध हो कुछ राग अलापे , मगरूर हो मंजिल तलासे , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | सुर्खी लिए होंठो पर अपने , नये द्रष्टिकोण को अपनाया , प्रभात का ये उजियारा , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया | सहजभाव से ले संकल्प , कुछ  क्षण  में   हैं मूक स्वर , उन स्वरों से उ ऋण, जिजीविषा को थामे , खुद में गुम मेरा साया , हो कोई जैसे रंग समाया |  -दीप्ति शर्मा 

कलम

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ये  मेरे साथ रहती है और सारे दर्द सहती है पर जिन्दगी से इसे बहुत हैरानी है ना ही हँसती ना ही रोती ये लिखती मेरी कहानी है|   वो अल्फ़ाज मेरे   दिल की धडकन के   सब इसकी जुबानी है   ये लिखती मेरी कहानी है | निगरा समझ वो मेरा सारा जहाँ  बताती है समझ मुझे लिखा उसने ये उसकी मेहरबानी है ये लिखती मेरी कहानी है|   रुके हुए कुछ झुके हुए   मेरे अश्कों में उसकी   हर वक्त निगरानी है   जब इसकी जुबानी है   ये लिखती मेरी कहानी है | -दीप्ति शर्मा

जिन्दगी

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                             रात के अँधेरे साये में वो चिडचिडाती रौशनी कभी राह दिखाती है तो कभी बस आँखों में चुभती सी नजर आती है | यक़ीनन उस रौशनी के भीतर कोई ख्वाब , कोई उम्मीद है जो पल पल जलती है , पर उसी वेग से जगती भी जाती है | अथाह मन में उत्पन्न हर बात और विचित्र विडंबनाओ से जूझती जिन्दगी , क्या कोई उम्मीद पूरी कर पायेगी या इस रौशनी में इसकी चमक फीकी पड़ जाएगी| अद्रीश की तरह ऊँचाई का कोई मुकाम पा मेरी जिन्दगी  आज किसी तारे की तरह आकाश में  टिमटिमाएगी   या धूमिल हो कोई अकस बन रह जाएगी | हर एक चाह की तपिश  में तप, मेरी उम्मीद एक नयी राह दिखाएगी | कभी रौशनी में जिन्दगी पिलकायी जाएगी तो कभी दिल की गहराई से नापी जाएगी | साथ ले अपना अक्स बस चलती ही जाएगी | कभी आत्मा को झकझोर देगी तो कभी पत्थरो से टकरा उड़ती चली जाएगी | कभी अपनी  मुस्कान  में खुद  को जान  उस उम्मीद को पहचानने की आस  से उसका असर देखेगी  , तो कभी हर एहसास  के साये  में खुद को दिखा  शांत  नज़रों से कुछ  खोजेगी |  क्या मेरी जिन्दगी , हर रौशनी में मेरा साथ देगी ? या मुख्तलिफ़ हो मुझसे विस्मृत  हो जाएगी | ये मेरी जिन्दगी  अं

ख्वाहिश की है |

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                               रौशन  जहाँ  की ही ख्वाहिश की है  मैंने अपने दिल की झूठे  बाज़ार  में सच्चाई के  साथ आजमाइश की है | मालूम है बस फरेब है यहाँ तो  फिर क्यों मैंने सपन भर आँखों में  अपने उसूलों की नुमाइश की है | जब मेरी जिन्दगी मेरी नहीं तो क्यों? ख्वाब ले जीने की गुंजाइश की है | कुछ जज्बात हैं मेरे इस दिल के  उनको समझ खुदा से मैंने बस  कुछ खुशियों की फरमाइश की है | मैनें तो बस कुछ लम्हों के लिए  रौशन जहाँ की ख्वाहिश की है | - दीप्ति शर्मा 

खता नहीं है |

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हर इन्सान में   ज़ज्बा है सच बोलने का फिर भी  वो झूठ से बचा नहीं है | पहना है हर चेहरे ने  एक नया चेहरा  और जीता है जिन्दगी   जब वो  बोझ समझ पर , जिन्दगी उसकी सजा नहीं है  वो झूठ से बचा नहीं है | खुद को पहचान वो  चलता है उन रास्तो पर  जहाँ खुद को जानने की उसकी कोई रजा नहीं है  वो झूठ से बचा नहीं है|  कहता तो है हर बात  बड़ी ही सच्चाई से पर  नजरें कहती है उसकी  कि उसके पास सच बोलने   की कोई वजह नहीं है  इसलिए ही तो वो  झूठ से बचा नहीं है | इसमें उसकी खता नहीं है | - दीप्ति  शर्मा 

तुम्हारी इजाजत

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                    मस्त अदाओ से सराबोर  तुम्हारी जुल्फ चेहरे से  हटाऊँ क्या तुम्हारी ये इजाजत है  ये सुहाने मौसम की नजाकत है | जाहिल जमाना करे इंकार पर पायलो की झंकार की मोहब्बते दिल में इबादत है ये सुहाने मौसम की नजाकत है | इख़्तियार तेरा जो दिल में है सोच उसे में लुत्फ़  उठाऊँ क्या तुम्हारी ये इजाजत है ये सुहाने मौसम की नजाकत है | चुनरी में छुपे उस चाँद के यहाँ आने की कुछ आहट है सोच तुम्हे चारो दिशाओ में मैं तुम्हारे ही गीत गाऊं क्या तुम्हारी ये इजाजत है ये सुहाने मौसम की नजाकत है | - दीप्ति  शर्मा

ये कैसी जिन्दगी

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मेरी तबियत बहुत दिन से ख़राब है, दिन पर दिन बिगड़ ही रही है कोई सुधर नही लग रहा है, रो रही थी अपनों को देख कर , की कहीं इनसे दूर न हो जाऊ और .....             कभी जिन्दगी यूँ  करवट लेती है  कि लगता है  मेरी जिन्दगी साथ  छोड़ मेरा मुझसे  दूर जा रही है | होंठो पर हंसी रख  नकार दूँ  हर दर्द  कभी कोई विपदा  या अनहोनी घटा  मेरी जिन्दगी साथ  छोड़ मेरा मुझसे  दूर जा रही है | ये जुदा हो रही मुझसे  या मैं जुदा हूँ इससे  नहीं हम एक ही हैं  तभी तो आज , ये मुझे अपने  साथ ले जा रही है  अपनों से दूर कर  हाथ पकड़ मेरा  खुदा से मिलने जा रही है  मेरी जिन्दगी साथ  छोड़ मेरा मुझसे  दूर जा रही है | कमजोर कर दिया  जो आसन हो ले जाना  मुझसे सबसे दूर  अब समझ आया , शायद अलविदा कहना  पड़ेगा मुझे अब सबसे  क्यों कि मेरी ये  जिन्दगी मुझे छोड़ नही  साथ ले दुनिया छोड़ दूर जा रही है  मेरी जिन्दगी मेरे  साथ जा रही है | - दीप्ति शर्मा                                                           

तेरा साथ नहीं

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तन्हा हूँ जहाँ में, अपने तो हैं साथ में  साथ मेरे है वो लम्हा  वो आलम तेरे साथ का  पर तेरा साथ नहीं | याद भी है परछाई भी तेरे आने की आहट भी गुलशन है वो हवा भी वही दिल में हैं जज्बात वही पर तेरा साथ नहीं | जीवन भी यहीं है  है जान वही  जिसको चाहा था तुने कभी  पर तेरा साथ नहीं | न बदल सकी वो फिजाये भी जो तू लाया अपने साथ कभी दिल में है वो प्यार भी जो तुझसे किया मैंने कभी पर तेरा साथ नहीं | -  दीप्ति शर्मा

कैसे बयां करूँ ?

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मैं अपनी भावनाओ को  शब्दों में कैसे बयां करूँ ? शायद कहीं ऐसा ना हो , की कोई मुझे सुने ही ना , और कोई समझे ही ना  वो बात जो सब समझे  ये मैं कैसे पता करूँ ? मैं अपनी भावनाओ को  शब्दों में कैसे बयां करूँ ? दीप्तमान हैं कुछ शब्द लफ्जो पर हर सहर प्रतिबिम्ब बन उन लफ्जो को जो समझ सकें उनका तहे दिल से मैं कैसे शुक्रिया अदा करूँ ? पर जो समझे ही नहीं उनका कैसे पता करूँ ? मैं अपनी भावनाओ को शब्दों में कैसे बयां करूँ ? - दीप्ति शर्मा                                                                                                                    

आपका आशीर्वाद चाहती हूँ

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आज मेरा जन्मदिन है आपका आशीर्वाद चाहती हूँ | रंग बिरंगी दुनिया में अपनी कोई पहचान चाहती हूँ  आपका आशीर्वाद चाहती हूँ | हर राह मे नयी राह बना  संकल्प ले आगे बढना चाहती हूँ  मैं अपनी हर राह में आपका आशीर्वाद चाहती हूँ | सव्छंद गगन में अरमानो को  पंख दे उड़ना चाहती हूँ  हर राग मे कोई गीत गा  उस पेड़ की तरह हरदम  ऊँचाई को छूना चाहती हूँ  आपका आशीर्वाद चाहती हूँ | - दीप्ति शर्मा 

जाना चाहती हूँ

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                 मैं हूँ छोटी सी पर अब बड़ी होना चाहती हूँ | उस मत्स्यालय से बाहर निकल  अपनी दुनिया में जाना चाहती हूँ| दिखावे के प्रेम को त्याग कर अपनी मर्जी से जीना चाहती हूँ |             अब मैं जी भर तैरना चाहती हूँ अपनी दुनिया में जाना चाहती हूँ | हैं मेरे अपने जहाँ    हैं मेरी खुशिया वहां  मैं उनके साथ जीना चाहती हूँ | कैद से आजाद हो मैं उन अपनों से मिलना चाहती हूँ  मैं अपनी दुनिया में जाना चाहती हूँ| - दीप्ति शर्मा

मेरी परछाई

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वो कैसी आह की परछाई हैं मैंने खुद को लहरों मे डुबो,  तूफानों से ये कश्ती बचायी है | जिस पर अब तक सम्भल मेरी जिंदगी चली आई है | हैं राहें कश्मकस भरी , अजनबी लोगो में रह किस  तरह बात समझ पाई है | मुददत से अकेली हूँ मैं , तमन्नाये जीने की मैने तो  ये बाजी खुद ही गंवाई है | वो गैरों के भरोसये शौक में आह में डूब ढलती हुई , फिरती वो मेरी ही परछाई है | - दीप्ति शर्मा 

कोई तो होगा

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कभी कोई तो होगा,  जो सिर्फ मेरा होगा, जिसकी याद सताएगी| और मुझे तडपायेगी | कोई ऐसी घडी तो आएगी  जब किसी की सांसे  मेरे बिना थम जाएँगी | चाहेगा वो मुझे इतना कि धड़कने उसकी मेरी धड़कने बन जाएगी | - दीप्ति शर्मा                             ये कविता मैने १० क्लास  मे लिखी थी                          आज आप सब के सामने लिखी है

मन की बात

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कई बार कई उम्मीदों को दिल में जगह पाते फिर टूटते हुए महसूस किया है | जिन्दगी मे सभी के साथ की जरुरत होती है , मैं भी सभी का साथ चाहती हूँ , पर पहल मुझे ही क्यों करनी पड़ती है ,फिर भी निराशा ही हाथ लगती है | निराशा को तोड़ता वो ख़ुशी का बादल दूर से आता दिखाई देता है , तो कुछ पल बाद वो भी ओझल हो जाता है | कितने रिश्ते बनते हैं तो ना जाने कितने बिछुड़ जाते हैं , फिर भी जिन्दगी की नाव हिलती डुलती चलती ही रहती है | कभी ख़ुशी तो कभी गम सहते हुए ये जिन्दगी बढती ही जाती है | कितनी ही निराशा हाथ लगती है पर उम्मीद दामन नही छोडती , एक उम्मीद के ख़तम होते ही एक नयी उम्मीद जगती है और उस को साकार करने का प्रयत्न होने लगता है, शायद ये तो पूरी हो जाये | उम्मीदों के भवर मे फंसी मैं एक उम्मीद पूरी होने होने की दरियाफ्त खुदा से करती हूँ , चाहे हो जाये कुछ , अपनों का साथ ना छूटे कभी , ना दुखे दिल किसी का  अपने मेरे ना रूठे कभी | - दीप्ति शर्मा

झरना

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क्यूँ दर्द समझ कर भी, नासमझ बना करते हैं| वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं और उसे देख के हँसते हैं | खलिश दबा सीने में तन्हा जीया करते हैं ,                   तमन्ना नही कोई बस में जान के हर अश्क का अफ़सोस किया करते हैं, वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं और उसे देख के हँसते हैं| तस्कीरे बना हर इल्ज्म को अधिकार दिया करते हैं, दिल के जख्मो को जो नकार दिया करते हैं, इंसानों के आंसू को देखा भी नही करते हैं, वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं, और उसे देख के हँसते हैं | - दीप्ति शर्मा

मैं

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दिल में उठे हर इक  सवाल की भाषा हूँ | सिमटे हुए अहसासों को  जगाने की अभिलाषा हूँ | गहरा है हर जज्बात  जज्बातों से पलते  खवाब की परिभाषा हूँ | अकेली हूँ जहाँ में पर  जगती हुई  मैं आशा हूँ | - दीप्ति शर्मा 

मैं आ गयी हूँ लौटकर

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मैं आ गयी हूँ लौटकर  अहसासों के दामन में कुछ अनछुए पहलुओं  को आजमाकर उन्हें जिन्दगी का हिस्सा बनाने  मैं आ गयी हूँ लौटकर | कुछ बातें अनकहीं  कुछ बातें अनसुनी हर जज्बात सुनाने  मैं आ गयी हूँ लौटकर | दूर थी मैं अपनों से उन अपनों का साथ पाने  कुछ किस्से सुनने और कुछ सबको बताने  ख्वाहिसों को बटोरकर मैं आ गयी हूँ लौटकर | - दीप्ति शर्मा