डायरी के पन्नें
ये उन दिनों की बात है जब हम मिले पहली दफा स्टेशनपर अनजान से , दूसरी दफा ताजमहल कितनी मन्नतों के बाद ये दिन आया था तुम और ताजमहल पास ही ,सपना लग रहा जैसे ,ताजमहल देखना बचपन की तमन्ना और तुम्हारा मिलना तो लगता हर तमन्ना पूरी हो गयी तुम्हारी बाहों के आगोश में यमुना के पानी में पैर डुबो महसूस करती रही तुम्हें प्यार यहीं है बस ताजमहल की यादें कड़ी नंबर एक #दीप्तिशर्मा
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सादर
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
मेरे ब्लॉग में भी पधारें |
**मेरी कविता**
तृप्ति हूँ या प्यास हूँ .
टूटी हुई आस -या
खोया हुआ विश्वाश हूँ .
भोर का कलरव- या मौन हूँ मैं
दसों दिशाएं पूंछती हैं -मुझसे
ना जाने कौन हूँ मैं .
कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये
धन्यवाद!
बहुत ही सुंदर और गहन सोच को उजागर करती हुई बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट हिंदी दिवस पर लिखी पर आपका स्वागत है /
http://prernaargal.blogspot.com/2011/09/ke.html/ आभार/