मेरी परछाई
वो कैसी आह की परछाई हैं
मैंने खुद को लहरों मे डुबो,
तूफानों से ये कश्ती बचायी है |
जिस पर अब तक सम्भल
मेरी जिंदगी चली आई है |
हैं राहें कश्मकस भरी ,
अजनबी लोगो में रह किस
तरह बात समझ पाई है |
मुददत से अकेली हूँ मैं ,
तमन्नाये जीने की मैने तो
ये बाजी खुद ही गंवाई है |
वो गैरों के भरोसये शौक में
आह में डूब ढलती हुई ,
फिरती वो मेरी ही परछाई है |
- दीप्ति शर्मा
- दीप्ति शर्मा
Comments
बहुत सुन्दर रचना लिखी .
एक अच्छी अभिव्यक्ति .......क्या खूब लिखा है!
शुभ कामनाएं
सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|
लम्बी फैल गयी परछाई।
तमन्नाये जीने की मैने तो
ये बाजी खुद ही गंवाई है |
waaaahhhhhhhh
परछाईं से हो गयी दीप्ती की पहचान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
फिरती वो मेरी ही परछाई है
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
बधाई एवं आभार !!
मेरी टिप्पणी कहाँ गयी?
प्रेम को लेकर मेरी एक पोस्ट पर नजर डालें और अपने विचार वहां रखें तो अच्छा लगेगा।
yaha se kuch comment apne aap delete ho gye
mujhe nhi pata
mai kosis kar rahi hu ki
mujhe pata chal jaye
बहुत सुन्दर रचना लिखी!
आपको हेप्पी वेलन्टाईन डे की हार्दिक शुभकामनायें
...स्वीकार करें
dil bag-2 hogya yahan akar.
aapke shabdo me jo wajan hai uska koi jabab nahi.
aap hamare blogg par bhi padhare.
Thanx
अच्छी अभिव्यक्ति ..........
सस्नेहाभिवादन !
खुद को लहरों मे डुबो,
तूफानों से ये कश्ती बचाई है
व्यष्टि के उत्सर्ग द्वारा समष्टि की रक्षा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत हुआ है आपकी रचना में … आभार !
नेट की समस्या के कारण
दो दिन विलंब से ही …
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं ! :)
♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
तूफानों से ये कश्ती बचाई है"
शुभ आशीष
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'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !
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