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चाहा था उन्हें

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कसूर इतना था कि  चाहा था उन्हें दिल में बसाया था उन्हें कि मुश्किल में साथ निभायेगें ऐसा साथी माना था उन्हें | राहों में मेरे साथ चले जो दुनिया से जुदा जाना था उन्हें  बिताती हर लम्हा उनके साथ  यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें  किस तरह इन आँखों ने दिल कि सुन सदा के लिए  उस खुदा से माँगा था उन्हें  इसी तरह मैंने खामोश रह  अपना बनाना चाहा था उन्हें | -  दीप्ति शर्मा 

लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं

लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं , आवाज दे अपनी सामने लाऊँगी तैयार कर धुन उसकी  सबको वो ग़ज़ल सुनाऊंगी अभी तो लिख रही हूँ फिर बाद परीक्षा के सुना पाऊँगी लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं  आवाज़ दे अपनी सामने लाऊँगी  कुछ महकी बात सुनाऊंगी कुछ हँसाती सी कुछ रुलाती सी वो ग़ज़ल जल्द ही ले आऊँगी थोडा इंतज़ार कर लीजिये फिर तो इसकी धुन मैं आपके कानों तक पहुंचाऊँगी बस मैं गुनगुनाती जाऊँगी लिख रहीं हूँ एक ग़ज़ल मैं आवाज़ दे अपनी सामने लाऊँगी तो मिलते हैं परीक्षा के बाद !!!!!!!! - दीप्ति शर्मा