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Showing posts from September, 2014
राजपथ पर चलती मैं अकेली धूप से बचती छतरी ओढे चली जा रही हूँ धूप की तेज़ किरणें छतरी को पार कर मुझे जला रही हैं और मैं सुकडती चली जा रही हूँ , वहीं पास से लोगों का हूजूम निकल रहा है लोग नारे लगा रहे हैं , बलात्कार के दोषियों को फाँसी दो , बडे-बडे पोस्टर लटकाये , बडे बेनर उठाये चले जा रहे हैं , उनमें कुछ परेशान हैं देश की व्यवस्था को लेकर और कुछ भीड में पीछे चल , भीड बढा रहे हैं , वो फोन में अश्लील चित्र / फिल्में देख रहे और मुस्कुरा रहे हैं , साथ में नारी हक में नारे लगा रहे है , वो आज फिल्में देख मुस्कुरा रहे हैं कल बलात्कार कर खिलखिलायेगें अपनी मर्दनगी पर इठलायेगे , ये देख मैं वहीं किनारे सडक पर बैठ गयी और सोचने लगी कि कल फिर क्या ये किसी भीड का हिस्सा बन नारे लगायेगें बलात्कारियों को फाँसी दो ! या फिर किसी और हूजूम में इकट्ठे हों हिंदुस्तान जिन्दाबाद के नारे लगायेगें । © दीप्ति शर्मा