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Showing posts from November, 2011

जन्मदिन

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आज मेरी प्यारी बहिन का जन्मदिन है और मैं बहुत खुश हूँ ,, मेरी तरह से उसे ढेरो शुभकामनाये ,,, कृपया आप भी अपना बहुमूल्य आशीर्वाद उसे प्रदान करें | आज जन्मदिवस पर तेरे , ओ मेरी प्यारी बहिन दुलार करते हैं सभी प्यार करते हैं सभी हजार ख्वाहिशें जुडी हैं माँ पापा की तुझसे रौशन है ये आँगन तुझसे कह दे तू ये आज मुझसे न दूर हो हम कभी भी अब एक दूजे से जफ़र पा ओ मेरी बहिन घर जल्दी आना तू अबकी आँखों का तारा हैं तू सबकी तेरा सपना सच हो जाये हर ख्वाहिश पूरी हो जाये जन्मदिन पर मिले तुझे सबका इतना आशीष की हर बाला आने से पहले ही टल जाये जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो प्रीती . - दीप्ति शर्मा 

एहसास - ए- दिल

१. हंसाने वाले  मुस्कराहट  दे  ,, खुद भी मुस्कुराते  हैं . तो  क्या यूँ  सबको रुलाने वाले भी,,, कभी किसी के लिए आंसूं  बहाते हैं  २.मैं हूँ उन लहरों की तरह  जो ऊँचाई छुआ करती हैं  मिल जातीं हैं रेत से पर  खुद के अस्तित्व को कायम रखती हैं | दीप्ति शर्मा 

कैसी होगी वो मुलाकात |

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जाने दिन होगा या रात  कैसी होगी वो मुलाकात, अंधियारे को भेदती  मंद मंद चाँद की चांदनी  और हल्की सी बरसात  कुछ शरमीले से भाव  कुछ तेरी कुछ मेरी बात  अनजाने से वो हालत  कैसी होगी वो मुलाकात | आलम-ए-इश्क वजह  बन तमन्नाओं से  सराबोर निगाहों के साये  में हुयी तमाम बात  तकते हुए नूर को तेरे ठहरी हुयी सी आवाज  अनजाने से वो हालात कैसी होगी वो मुलाकात | 

गुनगुनाती रही

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मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों  में फंसी खुद को मनाती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | आँखों में सपने सजाती रही  धडकनों को आस बंधाती रही  मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी  यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही  याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही  हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही  खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही  मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही | मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही | - दीप्ति शर्मा 

हमारे गोल मोल सर

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आँखों में चश्मा , चेहरा है गोल  पढ़ाते रहते वो हमें  गोल मोल  बोर्ड पर लिखते है इतना और  हमेशा बोलते है ओर ओर | कहते हैं वो इतना मधुर कि बोलते उनके सो जाते सारे लोग  फिर भी वो नही रुकते और  पढ़ाते रहते वो हमे गोल मोल | हाथों में  पेपर चौक थाम के  कितना पढ़ाते हैं बार बार | कद है छोटा तन तन है मोटा  पढ़ने में है थोडा खोटा नंबर देता छोटा मोटा | टुकुर टुकुर यूँ देखे सबको  क्यों देखे ये पता नहीं  मन ना हो पढने का फिर भी  लिखते है वो मोर मोर  पढ़ाते रहते हमे गोल मोल | -  दीप्ति शर्मा 

वो

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आंचती हुई काजल को वो कैसे मुस्कुरा रही है |, लुफ्त उठा जीवन का मोहब्बत की झनकार में अपनी धुन में मस्त उसकी पायलियाँ गीत गा रही हैं | केशो को सवारकर  चुनरी ओढ़ वो घूँघट में लज्जा से सरमा रही है | साज सज्जा से हो  तैयार खुद को निहार आइने में नजरे झुका और उठा रही है | इंतज़ार में मेरे वो सजके भग्न झरोखे में छिपकर मेरा रास्ता ताक रही है | - दीप्ति शर्मा