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कुछ नोट्स

आज का दिन और गुन्नू सुबह सुबह मैं- गुन्नू गुड मॉर्निंग उठ जाओ गुन्नू- मम्मी सोई सोई प्लीज मैं - किसने बताया कि प्लीज भी बोलना है 'गुन्नू हँसते हुए दूसरी ओर मुँह कर लेट गया' थोड़ी देर बाद मुझे सफाई करते ध्यान से देख रहा, 'मैंने झाडने को बिस्तर झड़ाया है' गुन्नू- हटो मैं - कहाँ जाऊँ? गुन्नू- बाये ( बाहर जाओ)🙄 मैं - अब क्या करोगे ? गुन्नू- बाबू सोई सोई मैं अपना माथा पकडती उसे कहानी सुनाती हूँ, तभी अचानक बीच में उसकी कहानी शुरू गुन्नू- मम्मी कॉउ मोओओओओ बाये हाथी , आओ माऊं बाये , गोट मेएएएए कहानी के बीच में नमकीन की याद आ गयी गुन्नू- मम्मी ई हाथे ( नमकीन हाथ में दो) नमकीन लेकर थेंक ऊ बोल आगे बढ़ गये, मैं खडी देख रही हूँ फिलहाल काम बंद है , खाना बनाना है जब गुन्नू से बोला बेटा खाना बना लू? गुन्नू - चाय चाय मैं - अरे चाय तो पी ली कबकी , अब खाना तुम क्या खाओगे? गुन्नू-टोटी,दाय (दाल ,रोटी) बोलकर और नजदीक आते हुए सुनाई दिया मम्मी गोदी .. मैं देख रही हूँ उसे और वो हाथ फैलाकर बोल रहा है गोदी खाना तो बन गया 😂 लड्डू ही खाएगें आज लग रहा 😋

कुछ नोट्स

गुन्नू- मम्मी मम्मी मम्मी मैं - हाँ क्या हुआ? गुन्नू-  मम्मी आओ बैठें मैं- काम कौन करेगा फिर गुन्नू- हूट हूट मैं- अब ये क्या है गुन्नू- आऊल{ ऊल्लू हूट हूट बोलता है } फिर अचानक भागता है कुछ खिलौनों को जोड़कर ले आता है और मुझे डराते हुये कहता है ठकठक ( ट्रेक्टर को ठकठक कहता है) ठकठक को फेंककर फिर आ जाएगा गुन्नू- मम्मी मैं- हाँ गुन्नू- पूच्च ( चूम लेगा ) और कहेगा गुयीगुयी  ( गुदगुदी को गुयीगुयी) गजब है ये भी #बच्चों की लीला
किसी की आत्मा के मर जाने से अच्छा उसका खुद मर जाना है क्योंकि इंसानियत रहेगी तभी इंसान भी बचा रहेगा। #दुनिया के फेर में फँसी दीप्ति
मुस्कुरा रही हूँ मैं तभी तुम कहते हो हँस रहा हूँ मैं भी पर ! तुम्हारे हँसने और मेरे मुस्कुराने में बहुत अंतर है, एक स्त्री का मुस्कुराना तुम समझ नहीं सकते। #मन की बात करती दीप्ति
कल खाना बनाते हाथ जला तो यूँ ही कुछ लिखा हाथ का जलना क्रिया हुयी या प्रतिक्रिया ! सोच रही हूँ कढाही में सब्जी पक रही गरम माहौल है पूरी सेंकने की तैयारी आटा गूँथ लिया, लोई मसल बिलने को तैयार पूरियाँ सिक रहीं हैं या यूँ कहूँ जल रही है हाँ मैं उनको गर्म यातना ही तो दे रही फिर हाथ जलना स्वभाविक है अब समझी ये क्रिया नहीं प्रतिक्रिया ही है - दीप्ति शर्मा
पर्वत पिघल रहे हैं घास,फूल, पत्तीयाँ बहकर जमा हो गयीं हैं एक जगह हाँ रेगिस्तान जम गया है मेरे पीछे ऊँट काँप रहा है बहुत से पक्षी आकर दुबक गये हैं हुआ क्या ये अचानक सब बदल रहा प्रसवकाल में स्त्री दर्द से कराह रही है, शिशु भी प्रतिक्षारत ! माँ की गोद में आने को तभी एक बहस शुरू हुई गतिविधियों को संभालने की, वार्तालाप के मध्य ही शुरू हुआ शिशु का पिघलना पर्वत की भाँति फिर जम गया वहाँ मंजर रूक गयी साँसें माँ विक्षिप्त मृत शिशु गोद में लिए विलाप करती ठंड में पसीना आना आखिर कौन समझे फिर फोन भी नहीं लगते टावर काम नहीं करते सीडियों से चढ़ नहीं पा रहे उतरना सीख लिया है कहा ना सब बदल रहा है सच इस अदला बदली में हम छूट रहे हैं और ये खुदा है कि नोट गिनने में व्यस्त है। ©दीप्ति शर्मा
रोटी सिकने के दौरान, चूल्हे में राख हुई लकड़ी का दर्द कोई नहीं समझता, बस दिखता है तो रोटी का स्वाद। ( #जिन्दगी का सच )

वो रेल वो आसमान और तुम

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रेल में खिडकी पर बैठी मैं आसमान ताक रही हूँ अलग ही छवियाँ दिख रही हैं हर बार और उनको समझने की कोशिश मैं हर बार करती कुछ जोड़ती, कुछ मिटाती अनवरत ताक रही हूँ आसमान के वर्तमान को या अपने अतीत को और उन छवियों में अपनों को तलाशती मैं तुम्हें देख पा रही हूँ वहाँ कितने ही पेड़, बेंच, कुआँ, सड़क, नाला,पहाड़ निकलते चले जा रहे हैं इन्हें देख लगता है इस भागती जिदंगी में कितने साथ छूटते चले गये मन के कोने में कुछ याद तो है ही अब चाहे अच्छी हो ,बुरी हो और मैं उन्हें ढोती ,रास्ते पार करती तुम्हें खोज रही हूँ बहुत बरस बाद आज , मन के कोने  से निकल दिखे हो वहाँ बादलों की छवियों में और मैं तुम्हें निहार रही हूँ।
यादों की नदी,बातों का झरना सदियों से साथ बहते,झरते पर अब झरना सूख गया, नदी का वेग तीव्र हो गया, जिसमें कश्तियाँ भी डूब जाती हैं। (बस यूँ ही ,जिंदगी सच) # हिन्दी_ब्लॉगिंग

शोषित कोख

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उस बारिश का रंग दिखा नहीं पर धरती भींग गयी बहुत रोई ! डूब गयी फसलें नयी कली , टहनी टूट लटक गयीं आकाश में बादल नहीं फिर भी बरसात हुई रंग दिखा नहीं कोई पर धरती कुछ सफेद ,कुछ लाल हुई लाल ज्यादा दिखायी दी खून सी लाल मेरा खून धरती से मिल गया है और सफेद रंग गर्भ में ठहर गया है, शोषण के गर्भ में उभार आते मैं धँसती जा रही हूँ भींगी जमीन में, और याद आ रही है माँ की बातें हर रिश्ता विश्वास का नहीं जड़ काट देता है अब सूख गयी है जड़ लाल हुयी धरती के साथ लाल हुयी हूँ मैं भी। -- दीप्ति शर्मा