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ब्लॉग की दूसरी वर्षगाँठ 28/7/20012

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नमस्कार ,                  मुझे ये बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि आप सभी मित्रों , गुरुजनों के आशीष एवं सहयोग से और आप सभी की छत्रछाया में मेरे ब्लॉग ने अपने 2 वर्ष पुरे कर लिए हैं । बस यूँ ही अपना मार्गदर्शन एवं सहयोग देते रहियेगा ,,, आभारी हूँ ,,,, शुक्रिया ।

हिसाब

हिसाब ना माँगा कभी अपने गम का उनसे पर हर बात का मेरी वो मुझसे हिसाब माँगते रहे । जिन्दगी की उलझनें थीं पता नही कम थी या ज्यादा लिखती रही मैं उन्हें और वो मुझसे किताब माँगते रहे । काश ऐसा होता जो कभी बीता लम्हा लौट के आता मैं उनकी चाहत और वो मुझसे मुलाकात माँगते रहे । कुछ सवाल अधूरे  रह गये जो मिल ना सके कभी मैंने आज भी ढूंढे और वो मुझसे जवाब माँगते रहे । - दीप्ति शर्मा

बरसात

रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे जब याद तुम्हारी आती है । बिन मौसम ही मेरे घर में वो बरसात ले आती है । जब पड़ी मेह की बूंदे मुस्कुराते उन फूलों पर हर्षित फूलों पर वो बूंदे तेरा चेहरा दिखाती है । नाता तो गहरा है इन बूंदो का तुझसे चाहे तेरी याद हो या ये बरसात हो मुझे तो  दोनों भिगो जाती हैं । - दीप्ति शर्मा

प्राण प्रिये

वेदना संवेदना अपाटव  कपट को त्याग बढ़ चली हूँ मैं हर तिमिर की आहटों का पथ बदल अब ना रुकी हूँ मैं साथ दो न प्राण लो अब चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये । निश्चल हृदय की वेदना को छुपते हुए क्यों ले चली मैं प्राण ये चंचल अलौकिक सोचते तुझको प्रतिदिन आह विरह का त्यजन कर चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये । अपरिमित अजेय का पल मृदुल मन में ले चली मैं तुम हो दीपक जलो प्रतिपल प्रकाश गौरव  बन चलो अब चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये । मौन कर हर वितथ  पनघट साथ नौका की धार ले चली मैं मृत्यु की परछाई में सुने हर पथ की आस ले चली मैं दूर से ही साथ दो अब चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये । --- दीप्ति शर्मा