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Showing posts from August, 2012

तुम आओगे ना ??

अहसासों के दरमियां मेरे ख़्वाबों को जगाने जब तुम आओगे ना कुछ शरामऊँगी  मैं धडकनों को थामकर कुछ बहक सा जाऊँगी मैं मुझे बहकाने तुम आओगे ना ???? इठलाती सी धूप में रूख पर नक़ाब गिराने जब तुम आओगे ना तेज़ किरणें शरमा जायेंगी तुम्हारे अक्स के आ जाने से मेरी परछाई को ख़ुद में समाने तुम आओगे ना ???? अकेलेपन में भींगी आँखों के आंसूओं को पोंछने  जब तुम आओगे ना एक मुस्कान खिल जायेगी कुछ किस्से सुनने भटकती इस ज़िंदगी में मुझे अपना बनाने आरजुओं को जगाने तुम आओगे ना ???? दो नहीं एक ही है हम इस हौसले को बढ़ाने जब तुम आओगे ना चाँद की चाँदनी तेज़ हो अपना तेज़ फैलायेगी उसकी रौशनी मुझ तक आकर तेरा अहसास करायेगी अहसास कराने अपना तुम आओगे ना ???? कह दो एक बार तुम आओगे ना ???? तुम आओगे !!!!! दीप्ति शर्मा 

हिमालय

हिमालय की मौन आँखों में शान्त माहौल के परिवेश में कुछ प्रश्नों को देखा है मैंने । खड़ा तो है अडिग पर उसके माथे की सलवटों पर    थकावट के अंशों को देखा है मैंने । प्रताड़ित होता है वो तो क्यों ? नहीं समझते हो तुम क्रोधित हो वो कैसे हिला दे धरती को ये देखा है मैंने । जब बहती हुयी पवन कुछ कहकर पैगाम सुनाती है तो पैगाम -ए - दर्द को छलकते धरती पर बहते देखा है मैंने । कभी ज्वाला सा जल जाता है और कभी नदियाँ बन बह जाता है उसे पिघलते रोते देखा है मैंने । भयानक क्रोध में तपते बादल की तरह फटकर तबाही फैलाते हुए देखा है मैंने । अभिमान करो ना प्रतिकार करो दर्द से बिलखते पिघलते उस अटूट ह्रदय को टूटते देखा है मैंने । - दीप्ति शर्मा 

चौराहा

जिंदगी का ये चौराहा , अपने दम पर गर्वित हाथ फैलाये खड़ा ,कुछ इठलाकर , सोचे कि मंजिल दिखता है सबको राह बताता है । जिंदगी के इस चौराहे पर कितनी ही गाड़िया आती चली जाती हैं , फिर बचती है बस वो सूनी खाली राह , इंतज़ार में फिर किसी मुसाफ़िर के जो आयेगा और अपनी मंजिल पायेगा , बढता चला जायेगा । पर जब राह ही मालूम ना हो तो ये क्या आभास करायेगा , राह दिखाने का आभास या राह में अकेले खो जाने का आभास ।  क्या ये चौराहा अकेलेपन में चुभती उस साँस को कुछ आस दिलायेगा या देख उसे हँसता जायेगा , जोर से या मन ही मन उसका उपहास उड़ायेगा । सूनसान  और अकेले उन रास्तों पर खो जाने का डर तो होगा पर एक विश्वास भी होगा उस चौराहे पर , जहाँ कोई तो आयेगा जो राह दिखायेगा , मंजिल दिलायेगा । पर ये चौराहा करता रहेगा इंतज़ार हर रोज नयी उम्मीद लिए नये मुसाफ़िरों का । - दीप्ति शर्मा