डायरी के पन्नें
ये उन दिनों की बात है जब हम मिले पहली दफा स्टेशनपर अनजान से , दूसरी दफा ताजमहल कितनी मन्नतों के बाद ये दिन आया था तुम और ताजमहल पास ही ,सपना लग रहा जैसे ,ताजमहल देखना बचपन की तमन्ना और तुम्हारा मिलना तो लगता हर तमन्ना पूरी हो गयी तुम्हारी बाहों के आगोश में यमुना के पानी में पैर डुबो महसूस करती रही तुम्हें प्यार यहीं है बस ताजमहल की यादें कड़ी नंबर एक #दीप्तिशर्मा
Comments
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कल 30/08/2011 को आपके दिल की बात नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मेरा साया मेरे साथ ही रहता है,
तन्हाई जो घर में थी अब बाहर है.
बधाई |
आशा
तुम ऐसे ही लिखते रहना मेरा दिल ये दुआ करता है
बहुत सुन्दर दिप्प्ती |
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html