टकटकी आँखें गड़ाये
मोटा सा चश्मा लगाये
वो हर सुबह बड़े ध्यान से
पढ़ा करते हैं अखबार
हम देखे उनको रोज रोज
पड़ जाते अचरज में बार बार
तो सोचा पूछे या ना पूछे
कि वो क्यों हैं परेशान
अन्तत: पूछ लिया
क्यों चच्चा...
क्या है राज
क्यों पढ़ते इतना ध्यान लगाये
रोज एक ही पन्ने को आप
मुरझाते से चेहरे के साथ
सिर खुजलाते बोले चच्चा
सुनो ओ रे बच्चा
उमर हो गयी 55 साल
और अब तक
नहीं लगी लुगाई हाथ
अखबार बाँचता हूँ हर रोज
शायद मिल जाये अब
तेरी चच्ची का साथ.
© दीप्ति शर्मा —
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ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ
आज मेरा सफ़र एक सीढ़ी चढ़ गया , बहुत कुछ पाया यहाँ रहकर मैंने , कितना कुछ सीखा तो आज इस अवसर पर बस यही कहना चाहती हूँ - आज ब्लॉग आकाश में असंख्य तारों के बीच चाँद सा प्यार दिया मुझे इस ब्लॉग परिवार ने | हर सुख दुःख में साथ निभाया है और बहुत कुछ सिखाया है इस ब्लॉग परिवार ने | एक साल गुजर गया पर यूँ लगता है जैसे सदियाँ बीत गयी हो आप सब का साथ पाकर | लगते हैं यहाँ सब अपने नही यहाँ गैर कोई बहुत सा प्यार दिया इस ब्लॉग परिवार ने | गलतियाँ जब हुई उचित मार्गदर्शन कर सही राह दिखाई इस ब्लॉग परिवार ने| जफ़र पथ पर चलकर मैं अब साथ चाहती हूँ हरदम आशीर्वाद चाहती हूँ इस ब्लॉग परिवार से | छोटो का स्नेह मिले बड़ों का आशीष बस इतना अधिकार चाहती हूँ इस ब्लॉग परिवार से | - दीप्ति शर्मा
मेरी परछाई
वो कैसी आह की परछाई हैं मैंने खुद को लहरों मे डुबो, तूफानों से ये कश्ती बचायी है | जिस पर अब तक सम्भल मेरी जिंदगी चली आई है | हैं राहें कश्मकस भरी , अजनबी लोगो में रह किस तरह बात समझ पाई है | मुददत से अकेली हूँ मैं , तमन्नाये जीने की मैने तो ये बाजी खुद ही गंवाई है | वो गैरों के भरोसये शौक में आह में डूब ढलती हुई , फिरती वो मेरी ही परछाई है | - दीप्ति शर्मा
Comments
अच्छा तो मेट्रिमोनियल पढते थे चच्चा...
अनु
आभार !! बेतुकी खुशियाँ
शायद मिल जाए अब तेरी चच्ची का साथ …
हा हा हा
:)
क्या बात है दीप्ति जी
इस बार तो हास्य कविता !
रंग जमा दिया …
:)
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
…और , आपकी प्रतीक्षा है मेरे ब्लॉग की ताज़ा पोस्ट पर
#
12-12-12 के अद्भुत् संयोग के अवसर पर
लीजिए आनंद ,
कीजिए आस्वादन
वर्ष 2012 के 12वें महीने की 12वीं तारीख को
12 बज कर 12 मिनट 12 सैकंड पर
शस्वरं पर पोस्ट किए
मेरे लिखे 12 दोहों का
:)