कब तक आबरू अपनी खोयेगी
हैवानियत पर फूट फूटकर रोयेगी
शरम करो नौजवानों, रहते तुम्हारे
कब तक वो नारी काल के गाल में सोयेगी??
© दीप्ति शर्मा

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