ये कैसी रौशनी
जब कभी हम बहुत दूर जाना चाहते हैं और बिना सोचे चल देते हैं तो कभी उसका परिणाम भयावह भी हो सकता है
इसे कविता तो नहीं कहुगी पर ये वो शब्द हैं जो मेरे दिल ने कहे....
दूर जहाँ रौशनी थी ,
कदम बढाये थे उसने ,
हौसला भी तो था|
था उल्लास इतना कि ,
सब भूल पहुँचाना
चाहती थी वो तो,
उस रौशनी तक |
डगमगा रहे थे कदम
ना जाने कितनी ,
दूर हो मंजिल |
बस एक आभास,
ही तो था उस रौशनी ,
के दूर होने का|
जो अपने पास ,
उसे बुलाती थी\
उमंग थी उसे उस
रौशनी मे समा जाने की|
उसके आगोश मे
लिपट जाने की |
दर्द झेल सामना ,
किया था मुस्किलो का,
पहुँचने को रौशनी तक\
आखिर पहुच गयी ,
उस रौशनी तक
अपनी मंजिल समझ |
नादाँ थी लगा था
एक वही मंजिल है
जब पहुंची उसकी ,
गिरफ्त मे तो जाना
वो कोई रौशनी नही ,
वो तो आग थी\
जिसने बैखोफ उडती हुई
उस चिड़िया के पंख
को ही जला दिया|
उसे पहुँचाना तो था
अपनी मंजिल तक
पर रौशनी की चाह,
मे वो पंख फेला ,
अंधकार मे पहुँच गयी |
वो अंधकार जहाँ
से लौट के आना
मुमकिन ही नहीं,
रौशनी की चाह मे
जो बढाये थे कदम
वो कदम ही उसे
मौत के आगोश मे ले गए|
इसे कविता तो नहीं कहुगी पर ये वो शब्द हैं जो मेरे दिल ने कहे....
दूर जहाँ रौशनी थी ,
कदम बढाये थे उसने ,
हौसला भी तो था|
था उल्लास इतना कि ,
सब भूल पहुँचाना
चाहती थी वो तो,
उस रौशनी तक |
डगमगा रहे थे कदम
ना जाने कितनी ,
दूर हो मंजिल |
बस एक आभास,
ही तो था उस रौशनी ,
के दूर होने का|
जो अपने पास ,
उसे बुलाती थी\
उमंग थी उसे उस
रौशनी मे समा जाने की|
उसके आगोश मे
लिपट जाने की |
दर्द झेल सामना ,
किया था मुस्किलो का,
पहुँचने को रौशनी तक\
आखिर पहुच गयी ,
उस रौशनी तक
अपनी मंजिल समझ |
नादाँ थी लगा था
एक वही मंजिल है
जब पहुंची उसकी ,
गिरफ्त मे तो जाना
वो कोई रौशनी नही ,
वो तो आग थी\
जिसने बैखोफ उडती हुई
उस चिड़िया के पंख
को ही जला दिया|
उसे पहुँचाना तो था
अपनी मंजिल तक
पर रौशनी की चाह,
मे वो पंख फेला ,
अंधकार मे पहुँच गयी |
वो अंधकार जहाँ
से लौट के आना
मुमकिन ही नहीं,
रौशनी की चाह मे
जो बढाये थे कदम
वो कदम ही उसे
मौत के आगोश मे ले गए|
दीप्ति-शर्मा
Comments
गिरना सिर्फ गिरना नहीं, घोतक है इस बात का कि चलने का यत्न हुआ था.
Keep it up!
aap sab ko dhanyvad
aapne mera margdarsan kiya
kripya yuhi mera margdansan karte rahiye dhanyvad
चर्चा मंच पर आने और ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया
vijayanama.blogspot.com
आपका आभार
यूँ ही अपना आशीष देते रहिये
धन्यवाद
मैं मूक प्रशंसक बनना ही अच्छा समझ रहा हूँ ।।
रचना से रूबरू होने के आमंत्रण के लिए आभार !
अच्छे भावों को पिरो कर काव्यमाला का रूप दिया है …
जीवन में बहुत बार सोचते कुछ हैं , होता कुछ और है ।
कई बार हम से फ़ैसले ग़लत ले लिए जाने के कारण भी सही नतीज़े नहीं मिलते ।
आपका जीवन सुखद् स्वप्न और मुस्कुराती गुनगुनाती कविता बने…!
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपका आभार
धन्यवाद