आवाज़

आवाज़ जो
धरती से आकाश तक
सुनी नहीं जाती
वो अंतहीन मौन आवाज़
हवा के साथ पत्तियों
की सरसराहट में
बस महसूस होती है
पर्वतों को लांघकर
सीमाएं पार कर जाती हैं
उस पर चर्चायें की जाती हैं
पर रात के सन्नाटे में
वो आवाज़ सुनी नहीं जाती
दबा दी जाती है
सुबह होने पर
घायल परिंदे की
अंतिम साँस की तरह
अंततः दफ़न हो जाती है
वो अंतहीन मौन आवाज़
-  दीप्ति शर्मा


Comments

Anonymous said…
Your home Theatre Structure: The Most effective
Medium From Watching Flicks

My web blog Panasonic PT-AE8000
Unknown said…
अति गहन विषय को सरल शब्दोँ मेँ व्यक्त करने हार्दिक बधाई

Popular posts from this blog

कोई तो होगा

ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ

मेरी परछाई