तेरा साथ नहीं
तन्हा हूँ जहाँ में,
अपने तो हैं साथ में
साथ मेरे है वो लम्हा
वो आलम तेरे साथ का
पर तेरा साथ नहीं |
याद भी है परछाई भीतेरे आने की आहट भीगुलशन है वो हवा भी वहीदिल में हैं जज्बात वहीपर तेरा साथ नहीं |
जीवन भी यहीं है
है जान वही
जिसको चाहा था तुने कभी
पर तेरा साथ नहीं |
न बदल सकी वो फिजाये भीजो तू लाया अपने साथ कभीदिल में है वो प्यार भीजो तुझसे किया मैंने कभीपर तेरा साथ नहीं |
- दीप्ति शर्मा
Comments
बहुत सुन्दर भावों से भरी रचना......खुदा करे कोई कभी किसी से जुदा न हो.....
याद में तेरी जहाँ को भूलती जाती हूँ मैं.
भूलने वाले कभी तुझको भी याद आती हूँ मैं.
जो तू लाया अपने साथ कभी
दिल में है वो प्यार भी
जो तुझसे किया मैंने कभी
पर तेरा साथ नहीं |
लिखती रहिये. सम्मोहित करती हैं यह पंक्तियाँ विशेष.
पर तेरा साथ नहीं....
गहरा भाव लिए हुए खूबसूरत पंक्तियाँ...
शुभकामनाएं....
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ek ek shabd rachna ki khubsurti me char chand laga rahe hai ....