परवरिश

बच्चों को हम क्या सीखा रहे हैं सिर्फ किताबें रटाने से या उन्हें बोलना सीखाने से काम नहीं चलेगा उन्हें जिम्मेदार बनना होगा सिर्फ रेस में भागना ही जरूरी नहीं है जरूरी ये है भाग क्यों रहें हैं और किस तरह, कहीं जाने अनजाने हम कुछ ऐसा तो नहीं कर रहे जिससे मासूम मन में वो बातें घर कर जायें फिर उन्हीं बातों का आधार बने उसका जीवन ,जीवन बचाना है तो सोचना होगा
रंग भेद की बात इन मासूम कोंपल के मन में आ कैसे जाती है ये समझिए हुआ यूँ कि मदर्स डे की पहली रात जब गुन्नू मेरे लिए ड्राइंग बना रहा था तो मेरे पास आकर बोला मम्मा इतना बन गया है अब कलर करना है तो कहने लगा आपको यलो कलर करूँगा और गुन्नू को ब्लैक सुनकर मेरा माथा ठनका ब्लैक क्यों बेटा आप कृष्णा के कलर के हो न सुंदर तो वो तपाक से बोलता है मम्मा मेरा दोस्त मुझे ब्लैक फेयरी बोलता है, गुन्नू को तो समझा दिया पर सवाल ये कि जो बच्चा ऐसा बोल रहा है उसके घर का माहौल कैसा होगा क्या परवरिश मिल रही है उसे
ये छोटा सा लगने वाला बहुत बड़ा सवाल है कि ऐसे ही बच्चों के मन में धीरे धीरे कुंठाएँ विकराल रूप ले लेती है ये खुद को सबसे श्रेष्ठ मानने लगते हैं जैसा कि घर में माहौल वैसा दिया जाता है
रोक दीजिए अभी भी बच्चों को तो कम से कम इन सबमें शामिल न ही कीजिए वो कोमल हैं मासूम हैं मुरझा जायेंगे कठोर हो जायेंगे उनकी कोमलता मत छीनिये न ।

Comments

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-05-2020) को   "अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3700)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

Onkar said…
बहुत खूब
चिंतन परक लेखन ।
चिंतन परक लेख।

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