जब मैं प्रेम लिखूंगी
अपने हाथों से,
सुई में धागा पिरो
कपड़े का एक एक रेशा सिऊगी
तुम्हारे लिये
मजबूती से कपड़े का
एक एक रेशा जोडूंगी
और जब उसे पहनने को बढ़ेगे
तुम्हारे हाथ
तब उस पल
उस अहसास से
मेरा प्रेम अमर हो जायेगा..
ⓒ दीप्ति शर्मा
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ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ
आज मेरा सफ़र एक सीढ़ी चढ़ गया , बहुत कुछ पाया यहाँ रहकर मैंने , कितना कुछ सीखा तो आज इस अवसर पर बस यही कहना चाहती हूँ - आज ब्लॉग आकाश में असंख्य तारों के बीच चाँद सा प्यार दिया मुझे इस ब्लॉग परिवार ने | हर सुख दुःख में साथ निभाया है और बहुत कुछ सिखाया है इस ब्लॉग परिवार ने | एक साल गुजर गया पर यूँ लगता है जैसे सदियाँ बीत गयी हो आप सब का साथ पाकर | लगते हैं यहाँ सब अपने नही यहाँ गैर कोई बहुत सा प्यार दिया इस ब्लॉग परिवार ने | गलतियाँ जब हुई उचित मार्गदर्शन कर सही राह दिखाई इस ब्लॉग परिवार ने| जफ़र पथ पर चलकर मैं अब साथ चाहती हूँ हरदम आशीर्वाद चाहती हूँ इस ब्लॉग परिवार से | छोटो का स्नेह मिले बड़ों का आशीष बस इतना अधिकार चाहती हूँ इस ब्लॉग परिवार से | - दीप्ति शर्मा
मेरी परछाई
वो कैसी आह की परछाई हैं मैंने खुद को लहरों मे डुबो, तूफानों से ये कश्ती बचायी है | जिस पर अब तक सम्भल मेरी जिंदगी चली आई है | हैं राहें कश्मकस भरी , अजनबी लोगो में रह किस तरह बात समझ पाई है | मुददत से अकेली हूँ मैं , तमन्नाये जीने की मैने तो ये बाजी खुद ही गंवाई है | वो गैरों के भरोसये शौक में आह में डूब ढलती हुई , फिरती वो मेरी ही परछाई है | - दीप्ति शर्मा
Comments
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-07-2014) को ""क़ायम दुआ-सलाम रहे.." (चर्चा मंच-1686) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'