मौन की भाषा मौन तक
खुली आँखों.. खुले कानों से
ना देखी जाती है
ना सुनी जाती है
ये भाषा..
मौन का आवरण पहन
मौन ही में दफन हो जाती है..
© दीप्ति शर्मा
डायरी के पन्नें
ये उन दिनों की बात है जब हम मिले पहली दफा स्टेशनपर अनजान से , दूसरी दफा ताजमहल कितनी मन्नतों के बाद ये दिन आया था तुम और ताजमहल पास ही ,सपना लग रहा जैसे ,ताजमहल देखना बचपन की तमन्ना और तुम्हारा मिलना तो लगता हर तमन्ना पूरी हो गयी तुम्हारी बाहों के आगोश में यमुना के पानी में पैर डुबो महसूस करती रही तुम्हें प्यार यहीं है बस ताजमहल की यादें कड़ी नंबर एक #दीप्तिशर्मा
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नई रचना : सूनी वादियाँ
ummda...
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