पेड़ के हरे पत्ते
देखा था कल गिरते
पेड़ के हरे पत्तों को
ना आँधी आयी कोई
ना पतझड़ का मौसम था
बस तड़पते सहते
रोते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
आगे बढ़ना था उनको
विश्वास के साथ
कुछ पल जीने का
साथ ही तो माँगा था
पर तोड़ दिया उसने
जिससे साथ चल
जीने का सहारा माँगा था
मुरझाते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
किसी की चाहत के लिये
डाल से अलग हो
जलते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
©दीप्ति शर्मा
पेड़ के हरे पत्तों को
ना आँधी आयी कोई
ना पतझड़ का मौसम था
बस तड़पते सहते
रोते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
आगे बढ़ना था उनको
विश्वास के साथ
कुछ पल जीने का
साथ ही तो माँगा था
पर तोड़ दिया उसने
जिससे साथ चल
जीने का सहारा माँगा था
मुरझाते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
किसी की चाहत के लिये
डाल से अलग हो
जलते देखा था मैंने
पेड़ के हरे पत्तों को
©दीप्ति शर्मा
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