यथार्थ के नीले गगन में
बह रहें हैं भाव मेरे
पीर परायी सुन सुनकर
दिल में उपजे हैं घाव मेरे
सुनो जरा क्या हुआ है देखो
तुम बन गये हो हमराज मेरे
मधुर गीत सुनकर तुम्हारे
गूँज उठे हैं राग मेरे
तराशा है खुद को तुम्हारे लिये
तुम बन गये हो अभिमान मेरे
©दीप्ति शर्मा

Comments

बहुत ही बढ़िया

विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सुन्दर भाव लिए रचना...
अति सुन्दर...
:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
yashoda Agrawal said…
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 27/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
बहुत बढिया .....
यूं ही अभिमान बना रहे ...
सुन्दर अभिव्यक्ति...
:-)
Onkar said…
सुन्दर रचना
वाह बहुत खूब
Mamta Bajpai said…
अच्छी है ...आभार
बहुत ही भावपूर्ण रचना ........
Rewa Tibrewal said…
bahut sundar prastuti...gehri baat
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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