उसने


जब झलक गये मेरे आँसू
जो दिखे नहीं महसूस हुए
पर देख लिया उसने इसको
पहचान लिया उसने मुझको
उस रिम-झिम सी फुआर में ।
उलझ गये जब ये केश मेरे
जो बिखर गये ना सुलझ सके
थाम लिया उसने उनको
सम्हाल लिया उसने मुझको
उस तूफ़ानी बयार में।
पलछिन में उसने छुपा लिया
मुझको आँखों में बसा लिया
क़ैद किया उसने मुझको
अपने गहरे ज़ज्बात में।
© दीप्ति शर्मा


Comments

Anonymous said…
waah beta
Anonymous said…
उलझ गये जब ये केश मेरे
जो बिखर गये ना सुलझ सके
थाम लिया उसने उनको
सम्हाल लिया उसने मुझको
उस तूफ़ानी बयार में

bahut khoob yaar
ummdaa
यही सहारा होता है..
kshama said…
पलछिन में उसने छुपा लिया
मुझको आँखों में बसा लिया
क़ैद किया उसने मुझको
अपने गहरे ज़ज्बात में।
Behad sundar!
Smart Indian said…
सुन्दर!
रचना की भावनाएँ अच्छी हैं.- विजय
Shikha Kaushik said…
deepti -bahut sundar bhavon ko prakat kiya hai aapne .badhai
deepti sharma said…
sukriya aap sabhi ka
ASHISH YADAV said…
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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