जाना चाहती हूँ
मैं हूँ छोटी सी
पर अब बड़ी
होना चाहती हूँ |
उस मत्स्यालय
से बाहर निकल
अपनी दुनिया में
जाना चाहती हूँ|
हैं मेरे अपने जहाँदिखावे के प्रेम
को त्याग कर
अपनी मर्जी से
जीना चाहती हूँ |
अब मैं जी भर
तैरना चाहती हूँ
अपनी दुनिया में
जाना चाहती हूँ |
हैं मेरी खुशिया वहां
मैं उनके साथ
जीना चाहती हूँ |
कैद से आजाद हो
मैं उन अपनों से
मिलना चाहती हूँ
मैं अपनी दुनिया मेंजाना चाहती हूँ|
- दीप्ति शर्मा
Comments
सलाम.
badhai
को त्याग कर
अपनी मर्जी से
जीना चाहती हूँ |
सुन्दर भाव सुन्दर शब्द रचना.........
बहुत सुंदर भाव ......!!
मनोज
को त्याग कर
अपनी मर्जी से
जीना चाहती हूँ |
बेहतरीन रचना....
अब बड़ी होना चाहती हूँ.....'
सुन्दर भाव लिए हुए प्रेरक कविता है..
नारी स्वतंत्रता के मायने
उम्दा
aap bahut acha likhti ho ,. badhayi sweekar kare.
-----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
हैं मेरी खुशिया वहां
मैं उनके साथ
जीना चाहती हूँ |
कैद से आजाद हो
मैं उन अपनों से
मिलना चाहती हूँ
मैं अपनी दुनिया में
जाना चाहती हूँ|
sunder abhivyakti dipti ji