अभी कुछ देरपहले
मुझे आवाज़ आयी
माँ , मैं यहाँ खुश हूँ
सब बैखोफ घूमते हैं
कोई रोटी के लिये नहीं लड़ता
धर्म के लिये नहीं लड़ता
देश के लिये,
उसकी सीमाओं के लिये नहीं लड़ता
देखो माँ
हम हाथ पकड़े यहाँ
साथ में खड़े हैं
सबको देख रहे हैं
माँ, बाबा से भी कहना
कि रोये नहीं
हम आयेगें फिर आयेगें
पर पहले हम जीना सीख लें
फिर सीखायेगें उनको भी
जिन्हें जीना नहीं आता
मारना आता है
माँ, आँसू पोंछकर देखो मुझे
मैं दिख रहा हूँ ना!
हम सभी आयेगें पर तभी
जब वो दुनिया अपनी सी होगी
नहीं तो हम बच्चे
उस धरती पर कभी जन्म नहीं लेगें
तब दुनिया नष्ट हो जायेगी
है ना!
पर उससे पहले
माँ, बाबा आप
यहाँ आ जाना हमारे पास
हम यहीं रहेगें
फिर कोई हमें अलग नहीं करेगा
तब तक के लिये तुम मत रोना
हम सब देख रहे हैं
और मैं रोते हुए चुप हूँ
बस एक टक देख रही हूँ
तुझे बेटा
तेरे होने के अहसास के साथ
©दीप्ति शर्मा
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ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ
आज मेरा सफ़र एक सीढ़ी चढ़ गया , बहुत कुछ पाया यहाँ रहकर मैंने , कितना कुछ सीखा तो आज इस अवसर पर बस यही कहना चाहती हूँ - आज ब्लॉग आकाश में असंख्य तारों के बीच चाँद सा प्यार दिया मुझे इस ब्लॉग परिवार ने | हर सुख दुःख में साथ निभाया है और बहुत कुछ सिखाया है इस ब्लॉग परिवार ने | एक साल गुजर गया पर यूँ लगता है जैसे सदियाँ बीत गयी हो आप सब का साथ पाकर | लगते हैं यहाँ सब अपने नही यहाँ गैर कोई बहुत सा प्यार दिया इस ब्लॉग परिवार ने | गलतियाँ जब हुई उचित मार्गदर्शन कर सही राह दिखाई इस ब्लॉग परिवार ने| जफ़र पथ पर चलकर मैं अब साथ चाहती हूँ हरदम आशीर्वाद चाहती हूँ इस ब्लॉग परिवार से | छोटो का स्नेह मिले बड़ों का आशीष बस इतना अधिकार चाहती हूँ इस ब्लॉग परिवार से | - दीप्ति शर्मा
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वो कैसी आह की परछाई हैं मैंने खुद को लहरों मे डुबो, तूफानों से ये कश्ती बचायी है | जिस पर अब तक सम्भल मेरी जिंदगी चली आई है | हैं राहें कश्मकस भरी , अजनबी लोगो में रह किस तरह बात समझ पाई है | मुददत से अकेली हूँ मैं , तमन्नाये जीने की मैने तो ये बाजी खुद ही गंवाई है | वो गैरों के भरोसये शौक में आह में डूब ढलती हुई , फिरती वो मेरी ही परछाई है | - दीप्ति शर्मा
Comments
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर लिंक्स के लिये साभार धन्यवाद.
सुंदर लिंक्स के लिये साभार धन्यवाद.
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