अभी कुछ देरपहले
मुझे आवाज़ आयी
माँ , मैं यहाँ खुश हूँ
सब  बैखोफ घूमते हैं
कोई रोटी के लिये नहीं लड़ता
धर्म के लिये नहीं लड़ता
देश के लिये,
उसकी सीमाओं के लिये नहीं लड़ता
देखो माँ
हम हाथ पकड़े यहाँ
साथ में खड़े हैं
सबको देख रहे हैं
माँ, बाबा से भी कहना
कि रोये नहीं
हम आयेगें फिर आयेगें
पर पहले हम जीना सीख लें
फिर सीखायेगें उनको भी
जिन्हें जीना नहीं आता
मारना आता है
माँ, आँसू पोंछकर देखो मुझे
मैं दिख रहा हूँ ना! 
हम सभी आयेगें पर तभी
जब वो दुनिया अपनी सी होगी
नहीं तो हम बच्चे
उस धरती पर कभी जन्म नहीं लेगें
तब दुनिया नष्ट हो जायेगी
है ना! 
पर उससे पहले
माँ, बाबा आप
यहाँ आ जाना हमारे पास
हम यहीं रहेगें
फिर कोई हमें अलग नहीं करेगा
तब तक के लिये तुम मत रोना
हम सब देख रहे हैं
और मैं रोते हुए चुप हूँ
बस एक टक देख रही हूँ
तुझे बेटा
तेरे होने के अहसास के साथ
©दीप्ति शर्मा

Comments

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (19-12-2014) को "नई तामीर है मेरी ग़ज़ल" (चर्चा-1832) पर भी होगी।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Pratibha Verma said…
संवेदनशील। ।
शोकाकुल माँ को दिलासा देती एक मासूम पुकार..
शोकाकुल माँ को दिलासा देती एक मासूम पुकार..

सुंदर लिंक्स के लिये साभार धन्यवाद.

सुंदर लिंक्स के लिये साभार धन्यवाद.
कैसी हो गई है यह दुनिया !
DOT said…
Thank you sir. Its really nice and I am enjoing to read your blog. I am a regular visitor of your blog.
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Kailash Sharma said…
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....!!
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Harash Mahajan said…
सुंदर प्रस्तुती...

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