कंकाल



शमशान में रात दिन
जलती चिताओं का
उड्ता धुँआ सबको दिखता है
पर तिल तिल जल,
मन का कंकाल बनना
किसी को नहीं दिखता ।
-- दीप्ति शर्मा


Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी लिखी रचना मंगलवार 06 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
दिप्ती जी , बहुत ही गहरा भाव प्रस्तुत करती आपकी बेहतर रचना , धन्यवाद !
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