बरसात

रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो 
दोनों भिगो जाती हैं ।

- दीप्ति शर्मा

Comments

बहुत खूबसूरत दीप्ति जी ....ये मेह की बूँदें अब जल्द आ जाएँ घन गरजें मोर नाचें तो आनंद और आये ...प्यारी रचना /...भ्रमर ५
सावन का स्वागत हैं ...
बरसात सब कुछ नम कर जाती है..
बहुत ही खूबसूरत



सादर
बहुत खूबसूरत रचना... शुभकामनायें....
बहुत ही खुबसूरत सावन में भीगी पंक्तिया....
Unknown said…
waah ! shaandaar kavita

badhaai !
ASHISH YADAV said…
चाहे तेरी याद हो या ये बरसात हो, मुझे तो दोनो भिगो जाती हैं।
वाह दीप्ति जी। भावनाओं को बेहतरी से कहा आपने। अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारें।
ये सावन भी कितने ज़ुल्म ढ़ाता है ... सुंदर अभिव्यक्ति
सदा said…
वाह ... बहुत खूब ।
yashoda Agrawal said…
खूबसूरत रचना...
साधुवाद
वाह! बहुत खूब....
सादर.
Unknown said…
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...
सादर !!!

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