ऊँची चोटियों का अभिमान
उन ऊँची चोटियों को
कितना अभिमान है
उन पर पड़ रही
स्वर्णिम किरणों का
आधार ही तो
उनका श्रृंगार है ।
घाटियों की गहराई
विजन में ज़ज़्ब
यादों की अवहित्था
इनकी मिसाल है
उन ऊँची चोटियों को
कितना अभिमान है ।
तासीर देते वो एकांत
में खड़े मौन वृक्ष
उन चोटियों की
अटूट पहचान है
जर्रे जर्रे में महकती
चोटियों को छूती
वो मन्द मन्द पवन
हर कूचे में सरेआम है
उन ऊँची चोटियों को
कितना अभिमान है ।
© दीप्ति शर्मा
Comments
my hindi font is not doing
.. the top branches falls on the earth .. when a strom comes../
a piece of rock, situated on the top of hill .. may be crushed .. by roller ... in making roads..
so उन ऊँची चोटियों को
कितना अभिमान है
उन पर पड़ रही
स्वर्णिम किरणों का
आधार ही तो
उनका श्रृंगार है ... something missing.. or i could not understand//
a good post
मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html