अब क्या करना है |



इत्मिनान से जी लूँ
लिख लूँ कुछ नगमें
जो ज़ज्बात से भरें हों
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

गढ़ लूँ कुछ नये आयाम
सतत बढूँ दीर्घ गूंज से
ले मैं रुख पर नकाब
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

स्मरण कर उन्मुक्त स्वर
स्वछन्द गगन में टहलूं
सहजभाव से स्मृतियों में
कुछ ख्यालों को छुला लूँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

महसूस कर लूँ एहसास
तेरे यहाँ आने का
बरस जाये बरखा
सावन भर आये और
तुझसे मिलन हो जाएँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
--- दीप्ति शर्मा


Comments

Anonymous said…
waah beta
keep it up
Anonymous said…
waah beta
gud
Anonymous said…
bahut khoob deepti
like this poem
check out my blog also
Rakesh Kumar said…
बहुत अच्छी लगी आपकी यह भावपूर्ण प्रस्तुति.
भाव अहसास और विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
हनुमान लीला आपको पसंद आएगी.
ध्येय की दूसरी ओर है इत्मिनान का भरोसा..
पहले एहसास को महसूस कर लीजिए .. क्या करना है बाद में सोचा जायेगा ..बहुत सुन्दर
रेखा said…
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...
jo bhi sochogi achchha hi hoga..:)
khubsurat ahsaas!!
बेहतरीन।


सादर
kshama said…
Bahut sundar,nazuk ehsaason ko samete hue hai ye rachana!
kshama said…
Naya saal mubarak ho!
पहले महसूस कर लूँ जी लूँ जी भरके फिर सोचूंगी क्या करना है ... अच्छा ख्याल है...
Amrita Tanmay said…
बहुत बढ़िया लिखा है...

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