समझो गर तुम

                                               
शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी 
फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ |

उलझी हूँ अपनी ही कुछ बातों से 
फिर भी तो जिन्दगी की मैं आस हूँ |

क्यूँ ढूंढते हो मुझमें वो खुशियाँ 
मैं तो अपने जीवन से निराश हूँ |

कोई अनजाना डर तो है दिल में
वजह से उसकी ही मैं उदास  हूँ |

ज़िन्दगी जो अनजान है मुझसे 
रंजों से ज़िन्दगी की मैं हताश हूँ |
- दीप्ति शर्मा 

Comments

Anonymous said…
ab ye uljhane khatam kar dijiye!!!!
बहुत ही खुबसूरत रचना....
Anonymous said…
khyaal bahuta chhe hai...achhi rachna...
haan pehla sher apne aap me mukammal kaafiya tay nahi karta ye ek kami lagi muhe...

Mere latest post ko yahan padhe:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/09/blog-post_19.html
इस अंधकूप से बाहर आयें।
Shah Nawaz said…
बेहतरीन अभिव्यक्ति है दीप्ति जी..
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति के साथ.... मनभावन पोस्ट...
बजह से उसकी ही मैं उदास हूँ.
Sundar...but sad

उबरने की कोशिश जारी रखिये
रेखा said…
ये हताशा जल्द ही ख़त्म हो .....
shikha varshney said…
गज़ब की लय है.पर इतनी निराशा ठीक नहीं.
kshama said…
Nihayat sundar rachana!
निर्मल मन की सहज अभिव्यक्ति. अति सुन्दर. ...जीने के लिए उत्साह चाहिए. नैराश्य ठीक नहीं है.
yashoda Agrawal said…
रंजों की जिन्दगी और हताशा के साथ उदासी भी
बहुत खूब दीप्ति जी ...........साधुवाद
prerna argal said…
आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१०) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हमेशा ही इतनी मेहनत और लगन से अच्छा अच्छा लिखते रहें /और हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली (१०)के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
Vivek Jain said…
सुन्दर प्रस्तुति, बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Vivek Jain said…
सुन्दर प्रस्तुति, बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com



दीप्ति जी ,
रचना अच्छी है …
लेकिन निराशा हताशा को मन से निकाल बाहर कीजिए … कभी हो तो …

रचनाशीलता बहुत बड़ा सहारा है न ! :)



आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और
शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार
Anonymous said…
Hello! I just wanted to take the time to make a comment and say I have really enjoyed reading your blog.

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