नदी
कलकल करती सब कुछ सहती, कभी किसी से कुछ ना कहती , अनजानी राहों में मुड़ती बहती , चलती रहती नदियाँ की धार|
लटरें भवरें सब हैं सुनते , साथ में चलती मंद बयार ,कौतूहल में सागर से मिलती पर , चलती रहती नदियाँ की धार |
जुदा हो गयी हिम से देखो , तट से लिपट बहा है करती, सुनकर वो मस्त बहार,
फूल पत्तियाँ जलज औ पाथर, पथ में आए बार बार , अपने मन से हँसती गाती, चलती रहती नदियाँ की धार |
Comments
bahut sunder
जी हाँ ! जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह शाम .......
की कुहरा छट जाएगा मित्रा
की रास्ता कट जाएगा मित्रा
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अनेकानेक शुभकामनायें.
अनेकानेक शुभकामनायें.
इस कविता का तो जवाब नहीं !
नदी को सुंदर भावो से व्यक्त किया आपने
चलती रहती नदियाँ की धार
सुन्दर मस्त कविता में
भाव मानो नदिया की धार की
तरह बह रहे हैं.
शब्द कल कल छल छल
करके गुंजायमान हो रहे हैं.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
\लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
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hai
फूल पत्तियां जलज औ पाथर
पथ में आये बार बार
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
nice poem
really beautiful
nice blog yaar
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TRILOK SINGH THAKURELA
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very nice poem..
यह भी बहुत बढ़िया.
बधाई
बधाई...