मन की बात
कई बार कई उम्मीदों को दिल में जगह पाते फिर टूटते हुए महसूस किया है | जिन्दगी मे सभी के साथ की जरुरत होती है ,
मैं भी सभी का साथ चाहती हूँ , पर पहल मुझे ही क्यों करनी पड़ती है ,फिर भी निराशा ही हाथ लगती है |
निराशा को तोड़ता वो ख़ुशी का बादल दूर से आता दिखाई देता है , तो कुछ पल बाद वो भी ओझल हो जाता है |
कितने रिश्ते बनते हैं तो ना जाने कितने बिछुड़ जाते हैं , फिर भी जिन्दगी की नाव हिलती डुलती चलती ही रहती है |
कभी ख़ुशी तो कभी गम सहते हुए ये जिन्दगी बढती ही जाती है |
कितनी ही निराशा हाथ लगती है पर उम्मीद दामन नही छोडती , एक उम्मीद के ख़तम होते ही एक नयी उम्मीद जगती है और उस को साकार करने का प्रयत्न होने लगता है, शायद ये तो पूरी हो जाये |
उम्मीदों के भवर मे फंसी मैं एक उम्मीद पूरी होने होने की दरियाफ्त खुदा से करती हूँ ,
चाहे हो जाये कुछ ,
अपनों का साथ ना छूटे कभी ,
ना दुखे दिल किसी का
अपने मेरे ना रूठे कभी |- दीप्ति शर्मा
Comments
यह सिर्फ आपके मन की बात नहीं है.आपने अपने मन की बात से बहुत सारे निराश हृदयों को आवाज़ प्रदान की है.
आप की उम्मीद को खुदा सलामत रखे.
काफी सकरात्मक सोच है तुम्हारी......इस संसार में सदा के लिए कुछ भी नहीं होता......उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है.......खुश रहो|
हो मुकम्मल तीरगी ऐसा कभी देखा न था
एक शम्अ बुझ गई तो दूसरी जलने लगी
never loose your courage.
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ...
सार्थक लेखन के लिए बधाई !!
अपनों का साथ ना छूटे कभी,
ना दुखे दिल किसी का,
अपने मेरे रुठे ना कभी ।
आमीन...
मंगल कामना के साथ.......साधुवाद!
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी