झरना



क्यूँ दर्द समझ कर भी,
नासमझ बना करते हैं|
वो पत्थर के रोने को
झरना कहा करते हैं
और उसे देख के हँसते हैं |
खलिश दबा सीने में
तन्हा जीया करते हैं ,                  
तमन्ना नही कोई बस में
जान के हर अश्क का
अफ़सोस किया करते हैं,
वो पत्थर के रोने को
झरना कहा करते हैं
और उसे देख के हँसते हैं|
तस्कीरे बना हर इल्ज्म
को अधिकार दिया करते हैं,
दिल के जख्मो को जो
नकार दिया करते हैं,
इंसानों के आंसू को
देखा भी नही करते हैं,
वो पत्थर के रोने को
झरना कहा करते हैं,
और उसे देख के हँसते हैं |

- दीप्ति शर्मा

Comments

मर्मस्पर्शी गीत। शुभकामनाएं
पत्थर के रोने को झरना .... लोग दूसरों को पत्थर दिल ही समझा करते हैं ...बहुत भावुक करने वाली रचना ...
सुंदर एवं प्रशंसनीय अभिव्यक्ति

आभार
अपने दिल के हिसाब से समझते हैं लोग .. पराए दिल का हाल !!
बहुत खूब ... अच्छा लिखा है ... पत्थर के रोने झरना समझते हैं लोग ... क्या ख्याल है ... लाजवाब ....
मर्मस्पर्शी गीत
सुज्ञ said…
वाह!! स्टीक बिम्ब है, पत्थर के आँसू!!
UNBEATABLE said…
झरने को एक नयी परिभाषा दी है तुमने .... भावों से परिपूर्ण ..... बहुत सुन्दर रचना
Aseem Trivedi said…
achchi kavita hai khaskar akhiri ki do panktian... badhai.
लाजवाब रचना...
daanish said…
achhee rachnaa hai
gungunaate rehne jaisi achhee ... !
भावपूर्ण रचना । बधाई एवं शुभकामनाएं ।
Kailash Sharma said…
बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
झरने के माध्यम से प्रकृति का मानवीकरण................ बेहतर प्रस्तुति, दीप्ति जी! ....... वधाई.

समय मिले तो यह भी देखें और तदनुसार मार्गदर्शन/अनुसरण करें. http ;//baramasa98 .blogspot .com
Kunwar Kusumesh said…
पत्थर के रोने को झरना .
quite new approach.
wonderful.
Sunil Kumar said…
पत्थर के रोने को झरना ..........
मार्मिक रचना ,शब्द नहीं हैं कहने के लिए
Udan Tashtari said…
भावपूर्ण रचना.
खूबसूरत प्रस्तुति
Rohit Singh said…
खूबसूरत रचना
कविता की खूबसूरती इसी में है की शब्द चयन और भाव को कैसे प्रस्तुत किया गया हो....आपकी कविता अच्छी है...आपको बहुत बहुत बधाई...शुभकामनाएँ
khoobsoorat abhivyakti.
badhaayee sweekar karein...
Heart felt poem. very nice!
जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
सिलसिला जारी रखें ।
आपको पुनः बधाई ।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
प्रेरक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिए।
इस रचना में कहीं-कहीं मैं अपना अतीत खोज रहा था।
कल नेताजी सुभाषचंद बोस की जयन्ती थी
उन्हें याद कर युवा शक्ति को प्रणाम करता हूँ।
आज हम चरित्र-संकट के दौर से गुजर
रहे हैं। कोई ऐसा जीवन्त नायक युवा-पीढ़ी
के सामने नहीं है जिसके चरित्र का वे
अनुकरण कर सकें?
============================
मुन्नियाँ देश की लक्ष्मीबाई बने,
डांस करके नशीला न बदनाम हों।
मुन्ना भाई करें ’बोस’ का अनुगमन-
देश-हित में प्रभावी ये पैगाम हों॥
===========================
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
Shikha Deepak said…
सुंदर और भावपूर्ण रचना........
vandana gupta said…
ओह! क्या खूब लिखा है ………………बडे बेदर्द होते हैं दर्द देने वाले।
बहुत ही सुंदर रचना !!
क्या बात कही है
वो पत्थर के रोने को
झरना कहा करते हैं...
बहुत उम्दा...
आप सभी कों गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें !
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

Happy Republic Day.........Jai HIND
Mithilesh dubey said…
भावपूर्ण रचना । बधाई एवं शुभकामनाएं
आपने सच्चाई को कितनी मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है ..बहुत सुंदर
vijaymaudgill said…
bahut khoob, sach main bilkul naya bimb. maine apki ye rachna apne office main sath baithe dosto ko parh kar bhi sunayi kyuki mujhe sach main acchi lagi.
बहुत सुन्दर दीप्ति जी,भावनाओं से ओतप्रोत
बहुत सुन्दर
jeevan singh said…
so sweet yar deepti its beauty i cant say that really so so so nice poem. m waiting ur next poem plz......soon write it,.......
jeevan singh said…
deepti plzzz its req that next poem as soon as u write here.........
बहुत सुन्दर दीप्ति जी,भावनाओं से ओतप्रोत
बहुत सुन्दर
अति सुन्दर , बिम्बों और प्रतीकों का समझदारी भरा प्रयोग

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