जिन्दगी
उलझनों में जीती हुए मैं,
जिन्दगी को तलाश रही हूँ|
जगती हुई उन तमाम
अडचनों के साथ मैं खुश
रह जिन्दगी निखार रही हूँ |
बेवजह की उस उदासी का
जिक्र चला यादो की चादर से
खुद को पहचान रही हूँ|
गम भुला के दिल की उन
उम्मीदों को दिल मे बसा
तेरी यादों को ठुकरा रही हूँ |
जीने की चाह मे आह को भूला
चेहरे के तासुर में गम छिपा
जिन्दगी को तलाश रही हूँ |
- दीप्ति
जिन्दगी को तलाश रही हूँ|
जगती हुई उन तमाम
अडचनों के साथ मैं खुश
रह जिन्दगी निखार रही हूँ |
बेवजह की उस उदासी का
जिक्र चला यादो की चादर से
खुद को पहचान रही हूँ|
गम भुला के दिल की उन
उम्मीदों को दिल मे बसा
तेरी यादों को ठुकरा रही हूँ |
जीने की चाह मे आह को भूला
चेहरे के तासुर में गम छिपा
जिन्दगी को तलाश रही हूँ |
- दीप्ति
Comments
चहरे के तासुर में गम छुपा,
जिन्दगी को तलाश रही हु !!
अच्छी सुंदर रचना है जिन्दगी की तलाश में गम को पीने की कोशिश !
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
"(www.ambar-dhara.blogspot.com)"
आपके ब्लॉग की अब तक की श्रेष्ठ रचना है यह......बहुत सुन्दर ........सच है एक अपने को जान कर सब जान लिया जाता है......शुभकामनाये|
aap sab ka bahut bahut aabhar
एक दर्द भरी मर्मस्पर्शी कविता जो मन को उद्वेलित करने का मद्दा रखती है , आभार व बधाई।
apki rachna mere sath sath mere reporter mitra raj sarma ko bhi bahut achchhi lagi.
raj ka email ID hai, reporter_raj@yahoo.com
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'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
सुन्दर रचना
जिन्दगी का दूसरा नाम ही तलाश है
आती जाती सांसो की अन्नत आस है
sundar rachna..
shukriya..!
पलाश ji, 'अदा' ji
aap sabhi ka bahut bahut aabhar
yuhi apna aashish banaye rakhe
dhanyvad
yuhi margdarsan karte rahe
तलाश ये जारी रहे,
मुसाफिर के दिल में प्यास
आखिरी दम तक जारी रहे....
ये तलाश - ये प्यास ही
कुछ नया - कुछ ख़ास दिलाती है,
हमेशा एक नई उम्मीद
आँखों में चमक लाती है....