सरहदों के मौसम एक से 
बस अलग था तो 
मार दिया जाना पंछियों का
जो उड़कर उस पार हो लिए

रंगनी थी दिवार
कि जब तक खून लाल ना हो
जमीन भींग ना जाए
और हम सोते रहें

देर रात जश्न मनाते 
शराब पी बे- सूद
अपनी औरतों को मारते
हम अलग नहीं

चौराहे 
अलग रंग के
अलग शहरों के 
घटना एक सी
रेप कर दिया
चाकू मार दिया
हम एक हैं अलग नहीं

ये खून हरा है
खून बहेगा तबतक
जबतक वो लाल नहीं होता
मरेगी औरतें, मारेगा आदमी
होंगे रेप
चलेंगे चाकू

आदमी सोच रहा
हम हरे खून वाले 
जब बहेंगे 
तब बहेगा जहर 
तो खून लाल कर दो देवता
या पानी बना बहा दो सब
आ जाने दो प्रलय
अब जलमग्न हो जाने पर ही धूल पाएगी दुनिया

हम हो पायेंगे इंसान
तब ये खून लाल होगा

Deepti Sharma

Comments

Anonymous said…
"हम हो पायेंगे इंसान
तब ये खून लाल होगा"

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