बदलते रंगों में
तुम्हारे चाहने से रंग नहीं बदलते
प्रेम नहीं बदलते
खून लाल ही रहता है
और आसमान नीला
जैसे प्रेम बढ़ता है
खून अधिक लाल हो जाता
आसमान अधिक नीला
बढ़ते रंगों में
हम-तुम एक से हो गये
देखो !
प्रेम हमारा इंद्रधनुष बन रहा
बरस रहा
अब धरती सुनहरी हो चली है ।
@दीप्ति शर्मा
Comments
काफी दिनों के बाद पढ़ी आपकी रचना
आभार..
सादर..
सुंदर रचना!
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा!��