दहलीज जो पार की,
मुड़कर नहीं देखा पीछे
पर दहलीज ताकती रही
अपनों को तलाशती रही
कि कोई आएगा अपना लौटकर
इस पार
#दहलीज का दर्द
#बसयूँही
#दीप्तिशर्मा
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कोई तो होगा
नयन
वरालि सी हो चाँदनी लज्जा की व्याकुलता हो तेरे उभरे नयनों में । प्रिय विरह में व्याकुल क्यों जल भर आये? तेरे उभरे नयनों में । संचित कर हर प्रेम भाव प्रिय मिलन की आस है तेरे उभरे नयनों में । गहरी मन की वेदना छुपी बातों की झलक दिखे तेरे उभरे नयनों में । वनिता बन प्रियतम की प्रिय के नयन समा जायें तेरे उभरे नयनों में । © दीप्ति शर्मा
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