ये अमावस तारीखों में दर्ज हुयी बीत जाएगी,
पर जो तुम मन में बसा लिए हो
वो अमावस कभी क्या बीत पाएगी ?
जवाब यही कि वक्त तो आने दो
वक्त भी आया और गया
पर अमावस ना खतम हुयी
देखो मन तो तुम्हारा
अँधेरी सुरंग हुआ जा रहा
बदबू साँस रोक रही
कैसे जी रहे हो तुम?
यहाँ मेरा दम घुट रहा।
#अमावसकीरात और
#तुमकोसमझतीदीप्ति
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मेरी परछाई
वो कैसी आह की परछाई हैं मैंने खुद को लहरों मे डुबो, तूफानों से ये कश्ती बचायी है | जिस पर अब तक सम्भल मेरी जिंदगी चली आई है | हैं राहें कश्मकस भरी , अजनबी लोगो में रह किस तरह बात समझ पाई है | मुददत से अकेली हूँ मैं , तमन्नाये जीने की मैने तो ये बाजी खुद ही गंवाई है | वो गैरों के भरोसये शौक में आह में डूब ढलती हुई , फिरती वो मेरी ही परछाई है | - दीप्ति शर्मा
Comments
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'