बादलों का अट्टहास
वहाँ दूर आसमान में
और मूसलाधार बारिश
उस पर तुम्हारा मुझसे मिलना
मन को पुलकित कर रहा है
मैं तुम्हारी दी
लाल बनारसी साड़ी में
प्रेम पहन रही हूँ
कोमल, मखमली
तुम्हारी गूँजती आवाज
सा प्रेम
बाँधा  है पैरों में
जिसकी आवाज़
तुम्हारी आवाज सी मधुर है
मैं चल रही हूँ प्रेम में
तुमसे मिलने को
अब ये बारिश भी
मुझे रोक ना पाएगी ।

© दीप्ति शर्मा

Comments

Jyoti khare said…


बहुत सुन्दर और भावुक रचना ----
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----

आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
dr.mahendrag said…
यादों का स्पर्श भी कितनी सिंहरन उत्पन कर देता है, सुन्दर रचना, दीप्तिजी

Popular posts from this blog

मैं

कोई तो होगा

नयन