हिसाब

हिसाब ना माँगा कभी
अपने गम का उनसे
पर हर बात का मेरी वो
मुझसे हिसाब माँगते रहे ।
जिन्दगी की उलझनें थीं
पता नही कम थी या ज्यादा
लिखती रही मैं उन्हें और वो
मुझसे किताब माँगते रहे ।

काश ऐसा होता जो कभी
बीता लम्हा लौट के आता
मैं उनकी चाहत और वो
मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

कुछ सवाल अधूरे  रह गये
जो मिल ना सके कभी
मैंने आज भी ढूंढे और वो
मुझसे जवाब माँगते रहे ।
- दीप्ति शर्मा

Comments

काश ऐसा होता जो कभी
बीता लम्हा लौट के आता
मैं उनकी चाहत और वो
मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

क्या बात कही दीप्ति जी

बहुत बढ़िया

सादर
kshama said…
Laga,jaise aapne mere moohkee baat chheen lee...
कभी ज़िन्दगी सवाल करती है और कभी ज़िन्दगी ही जवाब भी देती है | बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
ज़िन्दगी के हिसाब किताब हैं.......इन्हें खोजना आसान नहीं...

सुन्दर रचना
अनु
जिंदगी की उलझने थी
पता नहीं कम थी या ज्यादा
लिखती रही मैं उन्हें और वो
मुझसे किताब मांगते रहे
ये हिसाब बेहिसाब है... सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत खूब..गहरी बात..
दूसरों से ही हिसाब मांगा जाता है .... अपना कब देते हैं ? सुंदर अभिव्यक्ति
काश ऐसा होता जो कभी
बीता लम्हा लौट के आता
मैं उनकी चाहत और वो
मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।bhaut gahri abhivaykti....
सच्‍ची,

बहुत अच्‍छी


मनोज
सच्‍ची,

बहुत अच्‍छी


मनोज

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