इंतिहाऐं इश्क की कम नहीं होती
वो अक्सर टूट जाया करती हैं
मुकम्मल सी वो कुछ यादें
बातों के साथ छूट जाया करती हैं
पहलू बदल जाते हैं जिंदगी के
उन तमाम किस्सों को जोड़ते
जुड़ती है तब जब
ये साँसे डूब जाया करती हैं
©दीप्ति शर्मा

Comments

सुन्दर पन्तियाँ
(अरुन = arunsblog.in)
बहुत खूब दीप्ति जी


सादर
M VERMA said…
बहुत खूब
बड़ी सजीव पंक्तियाँ..
yashoda Agrawal said…
जीवन्त रचना
शुक्रिया दीप्ति बहन
वाह बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर रचना.....
Kailash Sharma said…
बहुत सुन्दर....
बेहतरीन रचना,शुभकामनाएं


मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में

जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।

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