गुनगुनाती रही


मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं
बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों 
में फंसी खुद को मनाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

आँखों में सपने सजाती रही 
धडकनों को आस बंधाती रही 
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी 
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही 
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही 
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही 
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |

- दीप्ति शर्मा 

Comments

Anonymous said…
great beta
Good one ...from morning I was looking for a good poem to start my office work.
Thanks.
VIRENDRA KUMAR said…
It's a great poem.
खूबसूरत कविता... बहुत सुन्दर..
Rajesh Kumari said…
bahut sundar bhaav prem ka sagar bhara hai panktiyon me.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत
आभार.
बहुत खूब!
----
कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
kshama said…
pata nahee kyon,lekin tumhari ye rachana padh,meree aankhen bhar aayeen....
खूब्सूए़त नज़्म ...
किसी की यादें ये मंज़र खड़ा कर देती हैं ..
रेखा said…
बेहतरीन रचना ...
मौन बहा शब्दों के पार
गहरे भाव से सजी रचना....... दिल को छू गयी.....
Deepak Saini said…
सुन्दर भावभरा
प्यारा गीत
शुभकामनाये
वाह - वाह - वाह - वाह.....दीप्ति........भाव है...........एहसास है..........संवेदना है............कविता है..............क्या नहीं है इसमें...............सब कुछ तो है.........!!!
गहरे भाव....
सुंदर शब्‍द संयोजन।
Jeevan Pushp said…
बहुत ही भावपूर्ण रचना !
बहुत सुन्दर ..यही भाव होना चाहिए ज़िंदगी का ..
bahut hi khubsurat or bhavpurn rachana hai,,,,,

Popular posts from this blog

कोई तो होगा

ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ

मेरी परछाई