हमारे गोल मोल सर


आँखों में चश्मा , चेहरा है गोल 
पढ़ाते रहते वो हमें  गोल मोल 
बोर्ड पर लिखते है इतना और 
हमेशा बोलते है ओर ओर |
कहते हैं वो इतना मधुर कि
बोलते उनके सो जाते सारे लोग 
फिर भी वो नही रुकते और 
पढ़ाते रहते वो हमे गोल मोल |
हाथों में  पेपर चौक थाम के 
कितना पढ़ाते हैं बार बार |
कद है छोटा तन तन है मोटा 
पढ़ने में है थोडा खोटा
नंबर देता छोटा मोटा |
टुकुर टुकुर यूँ देखे सबको 
क्यों देखे ये पता नहीं 
मन ना हो पढने का फिर भी 
लिखते है वो मोर मोर 
पढ़ाते रहते हमे गोल मोल |
-  दीप्ति शर्मा 

Comments

Anonymous said…
waah beta
Sanjay Swami said…
wooooooooooooooooooooooooo bahut badiya dipti g
Kailash Sharma said…
बहुत रोचक..
मोर मोर पढ़िये अब तो।
babanpandey said…
agood poetry ofchildren
रेखा said…
काफी रोचक और सुन्दर प्रस्तुति ...
Deepak Saini said…
क्या करे सारे मास्टर जी ऐसे ही होते है
बढ़िया रचना
बधाई
मजेदार।
रोचक।
बहुत खूब....
ASHISH YADAV said…
लो सर जी, और पढ़ाओ१ मान जाते तो बैण्ड तो नही बजती।
हाहाहाहाहाहाहा
अच्छा है

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